पुतिन के भारत दौरे का चीन ने किया स्वागत: अब बनेगी रूस-भारत-चीन की नई त्रिपक्षीय महाशक्ति..?

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के 4–5 दिसंबर 2025 के भारत दौरे (वार्षिक भारत-रूस समिट) ने सिर्फ द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत नहीं किया — बल्कि भू-राजनीतिक परिदृश्य में एक नई संभावना का द्वार खोला। इस दौरे के बाद, चीन ने सार्वजनिक रूप से स्वागत करते हुए कहा है कि वह रूस और भारत के साथ मिलकर “तिरिपक्षीय साझेदारी” को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है। चीन का यह बयान इस बात का संकेत माना जा रहा है कि 21वीं सदी में Global South देशों की भूमिका और महत्त्व बढ़ने वाला है।


🌎पुतिन का दौरा — क्या था एजेंडा?

पुतिन 4–5 दिसंबर को दिल्ली पहुंचे। इस दौरे में दोनों देशों ने पारंपरिक रक्षा-सहयोग, ऊर्जा, और द्विपक्षीय व्यापार का पुनरावलोकन किया। लेकिन इस बार एजेंडा इससे कहीं आगे था — तकनीक, नवाचार, स्वदेशी रक्षा उत्पादन, और स्थानीय मुद्रा में व्यापार जैसी नई राहों पर बातचीत हुई। इस दौरे को कूटनीतिक और रणनीतिक दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण माना गया।

पुतिन ने माना कि रूस-भारत संबंध न केवल ऐतिहासिक दोस्ती पर आधारित हैं, बल्कि वैश्विक परिवर्तनों के बीच रणनीतिक साझेदारी का नया मॉडल हो सकते हैं।


📢चीन की पहली प्रतिक्रिया — ‘ग्लोबल साउथ’ की साझा जिम्मेदारी

पुतिन के भारत दौरे की घोषणा के बाद सोमवार (8 दिसंबर 2025) को चीन ने पहली बार सार्वजनिक प्रतिक्रिया दी। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने कहा कि भारत, रूस और चीन — ये तीनों उभरती अर्थव्यवस्थाएं हैं और ग्लोबल साउथ के अहम सदस्य हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि इन देशों के मजबूत द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय संबंध क्षेत्रीय और वैश्विक शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण हैं।

गुओ ने कहा कि बीजिंग रूस और भारत के साथ मिलकर दो-तरफा संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है। यह पहली बार है जब चीन ने खुलेआम इस तरह की त्रिपक्षीय साझेदारी का प्रस्ताव रखा है।


🤝क्या है इस त्रिपक्षीय संभावित गठजोड़ का महत्व?

  • वैश्विक शक्ति संतुलन: अमेरिका–पश्चिम और चीन–रूस नियमीत प्रतिस्पर्धा की पृष्ठभूमि में, भारत को शामिल करना भू-रणनीति में नया इम्पैक्ट लाएगा।
  • आर्थिक रूपांतरण: रूस-भारत व्यापार पहले से ही महत्वपूर्ण है; यदि चीन को शामिल किया गया, तो तीनों की समेकित मंडी — ऊर्जा, कच्चा माल, टेक उत्पादन, तकनीक — वैश्विक दक्षिण के लिए मजबूत विकल्प बन सकती है।
  • राजनीतिक-डिप्लोमैटिक वक्र: तिनों देशों का वजूद एक नए विश्व व्यवस्था (new world order) के संकेत दे सकता है, विशेषकर उन देशों के लिए जो पश्चिमी दबाव व रिपोर्टिंग से संतुष्ट नहीं हैं।

ऐसा गठजोड़ भू-राजनीतिक संतुलन और ग्लोबल दक्षिण की आवाज़ को विशेष सम्मान व प्लेटफार्म दे सकता है।


📱क्या वायरल वीडियो/दावा सच्चा है?

सोशल मीडिया पर कई वीडियो वायरल हुए हैं, जिनमें पुतिन- मोदी- चीन (शायद जिनपिंग) की तस्वीरें, झंडे व कैप्शन देखे गए।
मगर, इन वीडियो की पुष्टि के लिए किसी अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट या तृतीय पक्ष जाँच की पुष्टि नहीं मिली है।
जहाँ—जहाँ तथ्य दर्ज हैं, वे मीडिया रिपोर्ट (जैसे चीन की प्रतिक्रिया) वैध स्रोतों द्वारा दी गई हैं।
इसलिए, वायरल वीडियो को प्रूफेड सूचना के रूप में नहीं, बल्कि संदर्भ मूल्य के रूप में देखा जाना चाहिए।


🌏भारत के लिए क्या बदल सकता है?

  • भारत को सैन्य, आर्थिक और तकनीकी रूप से नई साझेदारी मिल सकती है — रूस से हथियार व ऊर्जा, चीन से आर्थिक-व्यापार व निवेश।
  • लेकिन इस नीति में संतुलन का खतरा भी है — पश्चिमी देशों से तनाव, प्रतिबंध, भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा तेज हो सकती है।
  • भारत की “स्वतंत्र विदेश नीति” की परीक्षा बढ़ जाएगी — यह देखना होगा कि भारत इस नए त्रिपक्षीय गठजोड़ में किस प्रकार अपनी संप्रभुता और सार्वभौमिक हितों को बनाए रखता है।

🤔वैश्विक प्रतिक्रिया / चिंताएं

कई पश्चिमी देश इस नए गठजोड़ को नकारात्मक संकेत के रूप में देख सकते हैं। रूस-यूक्रेन जंग, पश्चिम–रूस तनाव व यूक्रेन पर विश्व समुदाय की एकता पहले से ही सीमित है। यदि भारत-रूस-चीन त्रिपक्षीय मोर्चा मजबूत हुआ, तो न केवल रक्षा-नीति बल्कि आर्थिक प्रतिबन्धों, व्यापार, ब्रह्मांडीय शक्ति व дипломатिक दबावों की संभावना बढ़ जाएगी।


✅ Global South के लिए नए geopolitics के द्वार खोल सकती हैं

पुतिन का भारत दौरा, मोदी–पुतिन की बैठक, और उसके बाद चीन की प्रतिक्रिया — ये सब संकेत देते हैं कि 2025–26 के आस-पास भारत, रूस और चीन के बीच एक नया रणनीतिक, आर्थिक और भू-राजनीतिक गठजोड़ बनने की दिशा में कदम बढ़ा है। हालाँकि, सोशल मीडिया का वायरल वीडियो अभी पुष्ट नहीं है — इसलिए उसे सच मानने से पहले स्वतंत्र स्रोत व रिपोर्टिंग देखना जरूरी है। फिर भी, त्रिपक्षीय साझेदारी की संभावनाएँ न केवल भारत, रूस, चीन बल्कि पूरा Global South के लिए नए geopolitics के द्वार खोल सकती हैं।


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