चोटीपुरा गुरुकुल में शास्त्र स्पर्द्धा का उपक्रम अद्वितीयः आचार्य बालकृष्ण

शास्त्रीय प्रतिस्पर्धाओं के तहत दर्शन, उपनिषद्, रामायण, श्रीमद्भगवद्गीता, संस्कृतव्याकरण, पाणिनीयपञ्चोपदेश, चाणक्यनीति, विदुरनीति, षड्दर्शन, अमरकोश, तर्कसंग्रह, नीतिशतक, वैराग्यशतक इत्यादि शास्त्रों की हुईं कुल 24 प्रतियोगिताएं

AMROHA NEWS लव इंडिया, अमरोहा। आयुर्वेद मनीषी पूज्य आचार्य बालकृष्ण ने कहा, पूज्या आचार्या डॉ. सुमेधा को वह अपनी बड़ी बहन के समान मानते हैं और स्वयं भी उनसे प्रेरणा लेते हैं। वास्तव में ज्ञान परंपरा में उनका स्थान ऋषि-मुनियों की कोटि का है। उन्होंने कहा कि गुरुकुल चोटीपुरा इस समय देश भर में सर्वश्रेष्ठ एवम् अनुकरणीय शिक्षण संस्थान है।

चोटीपुरा में शास्त्र संरक्षण की दिशा में किए जा रहे विशेष प्रयास की मुक्तकंठ प्रशंसा करते हुए बोले, पूज्या आचार्या डॉ. सुमेधा जी के जन्म दिवस को शास्त्रीय दिवस के रूप में आरम्भ करने का उपक्रम अद्वितीय है। यह अद्भुत कार्य सनातन संस्कृति की शक्ति है। उन्होंने कहा कि आचार्य बालकृष्ण श्रीमद्दयानन्द कन्या गुरुकुल, चोटीपुरा में पूज्या आचार्या सुमेधा के जन्मदिन के उपलक्ष्य में आयोजित तीन दिनी शास्त्रीय प्रतिस्पर्धाओं के समापन अवसर पर बोल रहे थे। उल्लेखनीय है, शास्त्रीय प्रतिस्पर्धाओं के तहत दर्शन, उपनिषद्, रामायण, श्रीमद्भगवद्गीता, संस्कृतव्याकरण, पाणिनीयपञ्चोपदेश, चाणक्यनीति, विदुरनीति, षड्दर्शन, अमरकोश, तर्कसंग्रह, नीतिशतक, वैराग्यशतक इत्यादि शास्त्रों की प्रतियोगिताएं हुईं।

इस मौके पर पूज्या प्राचार्या आचार्या डॉ. सुमेधा के अलावा सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान बह्मा स्वामी आर्यवेश, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. दिनेश चंद्र शास्त्री, भारत सरकार के ज्वाइंट सेक्रेटरी श्री नवल कपूर, श्री गौतम खट्टर आदि विद्वानों की गरिमामयी मौजूदगी रही। इससे पूर्व प्रातःकाल की शुभ वेला में यज्ञ भी हुआ। सभी उपस्थित महानुभावों के संग-संग समस्त गुरुकुल परिवार ने संकल्पसुमन समर्पित कर आचार्या डॉ. सुमेधा को अपनी शुभकामनाएं प्रेषित कीं।

आचार्य बालकृष्ण ने कहा, आज सम्पूर्ण विश्व के अंदर जो विषमताएं, कटुताएं, असमानताएं हैं, उन्हें सनातन वैदिक संस्कृति के माध्यम से ही दूर किया जाना संभव है। सनातन संस्कृति का प्रत्यक्ष उदाहरण पूज्या आचार्या को देख कर अनुभव कर सकते हैं। पूज्य आचार्य ने अंत में गुरुकुल की छात्राओं को स्वाध्ययन, चिंतन, मनन और उपासना करते हुए जीवन में आगे बढ़ने का आशीर्वाद दिया। आचार्य बालकृष्ण ने छात्राओं को प्रेरित करते हुए कहा, गुरुकुलीय संस्कृति में रहकर अध्ययन करने वाले सभी छात्र-छात्राओं को अवश्य इस संस्कृति को आगे बढ़ाना चाहिए। गुरुकुल की पूर्व स्नातिकाओं को भविष्य में भी सदैव गुरुकुल से जुड़कर कार्य करने हेतु प्रेरित किया।

स्वामी आर्यवेश जी ने कहा, ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, शिल्पयज्ञ, राष्ट्रयज्ञ और मानवमात्र के लिए करुणा, दया तथा सर्वाेपकार करने का प्रबल संकल्प पूज्या आचार्या में विद्यमान है। आज का यह समारोह हमारे लिए निःसंदेह उत्साहवर्धक और ऊर्जा देने वाला है। शास्त्रीय प्रतिस्पर्धाओं के दौरान डॉ. विनय कुमार विद्यालंकार, डॉ सुधीर कुमार आर्य, डॉ. दीनदयाल, डॉ. धनीन्द्र झा, डॉ. देवदत्त सरोड़े, डॉ. अनिल प्रतापगिरि, डॉ. शालिकराम त्रिपाठी, डॉ. कालिका प्रसाद शुक्ल, डॉ. वेदव्रत, डॉ. भावप्रकाश गांधी, डॉ. पंकज कुमार रावल, श्री हरिकिशन वेदलंकार, डॉ. के. वरलक्ष्मी, डॉ. मोहित, प्रो. मदनमोहन झा, प्रो. आरजी मुरली कृष्णा, प्रो. मनोहरलाल आर्य आदि ने भी अपने उद्बोधन से समारोह को अनुगृहीत किया। शास्त्रीय स्पर्द्धाओं में जज के रूप में उपस्थित रहे विद्वान प्रोफेसरों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया।

उल्लेखनीय है, इस वर्ष तीन दिनी गुरुकुलीय शास्त्रस्पर्द्धा में कुल 24 प्रतियोगिताएं हुईं, जिनमें प्रथम, द्वितीय और तृतीय विजेता प्रतिभागियों को पुरस्कार के रूप में पदक, शिल्ड, प्रमाणपत्र और पुरस्कार राशि प्रदान की गई। शास्त्रस्पर्द्धा सत्र के ज्येष्ठ वर्ग में बीए तृतीय वर्ष की ऋतिका, शास्त्री द्वितीय वर्ष की वेदऋचा, कक्षा आठ की अगरिया सिरोही और नंदिता तिवारी, शास्त्री प्रथम वर्ष की शिवानी, हिमांशी, शास्त्री तृतीय वर्ष की प्रज्ञा, शास्त्री द्वितीय वर्ष की जाह्नवी और साधना, कक्षा बारह की शगुन, ऋषिका और महिमा श्रीवास्तव, प्राकशास्त्री प्रथम वर्ष की ब्रह्मा और संस्कृति, कक्षा 11 की सारिका कमल विजेता रहीं। कनिष्ठ वर्ग में कक्षा दस की वेदांशी श्रीवास्तव, कक्षा नौ की तनिषा भाटी, जिया कौर और दिव्या यादव, कक्षा आठ की दृष्टि, कक्षा सात की हर्षिका भाटी और श्रद्धा आर्या, कक्षा छह की दीक्षा कुंतल एवम् कक्षा चार की प्रज्ञा सैनी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया।

दूसरी ओर छात्राओं ने अपनी शास्त्रीय समझ को व्यक्त करते हुए गीता संवाद नाटिका एवं गीता गौरव गान की प्रभावशाली एवम् आकर्षक प्रस्तुति दी। महाराष्ट्र के अहमदनगर में कन्याओं की शिक्षा हेतु गुरुकुल संचालित कर रहीं स्नातिका सुश्री विश्रुति को हर वर्ष की भांति इस साल के गुरुकुल-गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। मुख्य अतिथि आचार्य बालकृष्ण को छात्राओं ने स्वनिर्मित श्लोकों से युक्त प्रशस्ति पत्र प्रस्तुत किया। अंत में पूज्या आचार्या डॉ सुमेधा ने सभी उपस्थित अतिथियों और विद्वानों का धन्यवाद किया।

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