ओबीसी की जातिगत जनगणना से क्यों पीछा छुड़ा रही है केंद्र की भाजपा सरकार: लौटनराम निषाद

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लव इंडिया, लखनऊ। भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद ने सेन्सस-2021 में जातिगत जनगणना कराने की मांग किया है।उन्होंने बताया कि तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह व गृहराज्यमंत्री किरण रिजिजू ने आरजीआई/सेन्सस कमिश्नर के साथ 30 अगस्त,2018 को प्रेस कांफ्रेंस करते हुए घोषणा किये थे कि 2021 में पिछड़ी जातियों की गिनती कराई जाएगी।परन्तुसेन्सस-2021 में ओबीसी कास्ट सेन्सस के प्रति केन्द्र सरकार ने असमर्थता जता दिया है।सरकार ने तर्क दिया है कि ओबीसी का कास्ट सेन्सस कराना सम्भव नहीं है।केन्द्र सरकार ने जातिगत जनगणना को कठिन व अव्यवहारिक बताते हुए मा.उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दिया है।जबकि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी ओबीसी की जातिगत जनगणना के प्रस्ताव सरकार को भेजा है।

उन्होंने जातिगत जनगणना न कराने के सम्बंध में सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा हलफनामा दायर कर अपना मंडल विरोधी संघीय चेहरा उजागर कर दिया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी अपने को पिछड़ी जाति का बताते नहीं अघाते।प्रधानमंत्री ने ओबीसी की जनगणना कराने से मनाकर अपना पिछड़ा विरोधी चेहरा उजागर कर दिया है।

निषाद ने कहा कि अंतिम बार ब्रिटिश हुकूमत ने 1931 में जातिगत जनगणना कराया था।आज़ादी के बाद ओबीसी की जनगणना कराना बन्द कर दिया गया।1951 के बाद हर दशक में जनगणना कराई जाती है।लेकिन ओबीसी की बन्द कर दिया गया।पिछड़े वर्ग के नेताओं के दबाव में कांग्रेस सरकार द्वारा सेन्सस -2011 में जातिगत जनगणना कराई गयी।लेकिन जब 15 जून,2016 में जनगणना रिपोर्ट घोषित की गई तो ओबीसी का आँकड़ा घोषित नहीं किया गया।इस जनगणना पर 4 लाख 93 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे।

आश्चर्य की बात है कि सेन्सस-2011 में एससी, एसटी,धार्मिक अल्पसंख्यक(मुस्लिम, सिक्ख,ईसाई, जैन, बौद्ध,पारसी,रेसलर आदि),ट्रांसजेंडर, दिव्यांग जनसांख्यिकीय आँकड़े घोषित कर दिए गए,लेकिन ओबीसी का आँकड़ा छुपा लिया गया।30 अगस्त,2018 को तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सेन्सस-2021 में ओबीसी की जनगणना कराने की घोषणा जनगणना विभाग की बैठक के बाद प्रेसवार्ता में किये थे।लेकिन अब भाजपा सरकार ओबीसी की जनगणना कराने से मुकर गई है।जिससे भाजपा का असली चेहरा उजागर हो गया है। निषाद ने कहा कि सामाजिक न्याय की मजबूती के लिए कास्ट व क्लास सेन्सस जरूरी है। संविधान के अनुच्छेद 15(4),16(4),16(4 ए) की भावना के अनुसार पर्याप्त व समुचित प्रतिनिधित्व या जिसकी जितनी संख्या भारी,उसकी उतनी हिस्सेदारी के लिए जातिगत जनगणना आवश्यक है।

उन्होंने राजस्थान की ब्राह्मण महासभा द्वारा ईडब्ल्यूएस का कोटा 10 से बढ़ाकर 21 प्रतिशत करने की मांग पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि शेष अनारक्षित कोटे को ओबीसी को दे देना न्यायसंगत होगा।कहा कि आश्चर्य तो इस बात का भी है कि केन्द्र सरकार ने किस आधार पर सवर्ण जातियों को 10 प्रतिशत कोटा दे दिया।इसके लिए न तो कोई आयोग बना था और न सवर्ण जातियों की जनगणना की कराई गई थी,यह तो 8-9 या 12-15 भी हो सकता था।

मण्डल कमीशन के अनुसार एससी-16%,एसटी-8%,गैर हिन्दू अल्पसंख्यक-17%(8.40% पिछड़े मुस्लिम),हिन्दू पिछड़ी जातियाँ-43.70% व लगभग 15 प्रतिशत सवर्ण जातियाँ थी।केन्द्रीय आरक्षण नीति के अनुसार एससी को 15%,एसटी को 7.5%,ओबीसी को 27% ,ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत कोटा है और 40.5% अनारक्षित कोटा है।उन्होंने कहा कि ईडब्ल्यूएस को 21 प्रतिशत कोटा दिया जाता है तो शेष अनारक्षित कोटा को ओबीसी को दे देने से लगभग समानुपातिक कोटा का बंटवारा हो जाएगा।क्योंकि इस समय ओबीसी की जनसंख्या 55 प्रतिशत से अधिक है।

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