Minority status for Hindus: केंद्र ने बदला रुख, कहा- दूरगामी परिणाम होंगे और समय चाहिए
हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई। इस दौरान जस्टिस संजय किशन कौल ने सरकार के जवाब में बदलाव पर कहा कि लगता है कि सरकार तय करने में सक्षम नहीं है कि वह क्या करना चाहती है। याचिका पर अपना जवाब दाखिल करते हुए केंद्र ने पहले कहा था कि राज्य इस पर फैसला ले सकते हैं। लेकिन सोमवार को केंद्र ने दोबारा हलफनामा पेश कर कहा कि इस मामले में विस्तृत चर्चा की जरूरत है।
जस्टिस कौल ने कहा कि केंद्र गिरगिट की तरह से रंग बदल रहा है। उन्हें ये बात समझ नहीं आ रही है कि सरकार चाहती क्या है। इस तरह की बातें पहले की जानी चाहिए थीं। इन सब चीजों से अनिश्चितता की स्थिति पैदा होती है। राज्यों से विमर्श के लिए और समय मांगे जाने पर कोर्ट ने कहा कि पहले आप ये तय करें कि करना क्या है। अगर आपकों राज्यों से चर्चा करनी है तो करिए। हम तो आपको ऐसा करने से नहीं रोक रहे। कोर्ट ने केंद्र को समय देते हुए सुनवाई 30 अगस्त के लिए टाल दी।
एडवोकेट अश्विन उपाध्याय ने 2011 की जनगणना का हवाला देकर कहा कि लक्षद्वीप, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और पंजाब में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। उनका कहना था कि इन सभी सूबों में कम तादाद में हिंदू रहते हैं। इन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का TMA Pai फैसला भी ये ही कहता है। उसमें कोर्ट ने कहा था कि संविधान का आर्टिकल 30 अल्पसंख्यकों से जुड़े मामलों की व्याख्या करता है।
गौरतलब है कि उपाध्याय ने इस मामले को लेकर पहली बार 2017 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने कोर्ट से अपील की थी कि अल्पसंख्यकों को लेकर नए निर्देश दिए जाएं। नेशनल माइनॉरिटी कमीशन ने मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसियों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया है। 2014 में इस कैटेगरी में जैनियों को भी जोड़ा गया। लेकिन हिंदुओं के बारे में अभी तक कोई फैसला नहीं लिया जा सका है। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें नेशनल माइनॉरिटी कमीशन से संपर्क करने का मशविरा दिया था। लेकिन कमीशन का कहना था कि ये उसके अधिकार से बाहर का मामला है। केंद्र सरकार ही सेक्शन 2 के तहत किसी कम्युनिटी को माइनॉरिटी का दर्जा दे सकती है।
उसके बाद उपाध्याय ने फिर से सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई ने इस मामले में अटर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की सहायता ली थी। लेकिन जब तक दोबारा मामले की सुनवाई हो पाती गोगोई रिटायर हो गए थे। उसके बाद सीजेआई बने एसए बॉब्दे ने बगैर किसी कारण का हवाला दिए याचिका को ही रद्द कर दिया। उसके बाद उपाध्याय ने अगस्त 2020 में फिर से याचिका दाखिल की। सुप्रीम कोर्ट ने 28 अगस्त 2020 को केंद्र सरकार से जवाब तलब किया था।