मुनिश्री ने टीएमयू के कुलाधिपति को वात्सल्य में दिया सहज पथगामी ग्रंथ
 
			अंतर्मना आचार्यश्री 108 प्रसन्न सागर जी महामुनिराज के परम प्रभावक शिष्य, प्रवर्तक मुनिश्री 108 सहज सागर जी मुनिराज नेे तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति श्री सुरेश जैन और एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर श्री अक्षत जैन को संत भवन में दिया मंगल आशीर्वाद
लव इंडिया, मुरादाबाद। तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद के संत भवन से लेकर जिनालय तक आस्था की सुगंध से महक रहे हैं। अंतर्मना आचार्यश्री 108 प्रसन्न सागर जी महामुनिराज के परम प्रभावक शिष्य, प्रवर्तक मुनिश्री 108 सहज सागर जी मुनिराज और निर्यापक मुनि श्री 108 नवपदम सागर जी महाराज का इन दिनों कैंपस में प्रवास पर हैं। जिनालय से लेकर संत भवन तक का माहौल आस्थामय है। कुलाधिपति श्री सुरेश जैन और एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर श्री अक्षत जैन ने संत भवन में सहज सागर जी मुनिराज का मंगल आशीर्वाद लिया। इस वात्सल्य के सैकड़ों श्रावक और श्राविकाएं साक्षी बने। मुनिश्री ने कुलाधिपति श्री सुरेश जैन को अपने जीवनवृत पर आधारित ग्रंथ सहज पथगामी सप्रेम प्रदान किया। उल्लेखनीय है, इसी साल 02 मार्च को मैनपुरी में आचार्य प्रसन्न सागर महाराज की दिव्य उपस्थिति में यूपी के पर्यटन मंत्री श्री जयवीर सिंह ने सहज सागर जी के जीवनवृत पर आधारित ग्रंथ सहज पथगामी का भव्य समारोह में विमोचन किया था। सहज पथगामी ग्रंथ में मुनिश्री के मैनपुरी में बिताए जीवन के बहुमूल्य पलों के अनेक संस्मरण हैं। दीक्षा लेने से पूर्व मैनपुरी मुनिश्री की जन्म और कर्मस्थली दोनों रही है। लखनऊ से एमबीबीएस करने के बाद मुनिश्री ने करीब 48 बरस मैनपुरी में बतौर डॉक्टर सेवाएं दी हैं। पंडित सुशील कुमार जैन अपने गुरू अंतर्मना आचार्यश्री 108 प्रसन्न सागर जी से दिसंबर 2023 में दीक्षा लेने के बाद मुनिश्री सहज सागर हो गए।
महावीर स्वामी का मना कैवल्य ज्ञान कल्याणक दिवस
जिनालय में भगवान महावीर के कैवल्य ज्ञान कल्याणक दिवस पर प्रवर्तक मुनिश्री सहज सागर जी और निर्यापक मुनिश्री नवपदम सागर जी के दिव्य सानिध्य में विधि-विधान से स्वामी महावीर की आरती और पूजन हुआ, जबकि प्रो. आरके जैन ने अभिषेक और शांतिधारा की। इस मौके पर श्रीमती ऋचा जैन, प्रो. विपिन जैन, श्रीमती नीलिमा जैन, डॉ. विनोद जैन, डॉ अर्चना जैन, श्रीमती अहिंसा जैन की उल्लेखनीय मौजूदगी रही। दूसरी ओर संत भवन में प्रवर्तक मुनि श्री 108 सहज सागर जी मुनिराज श्रावक-श्राविकाओं को अपने आशीर्वचन में बोले, दान देना पुण्य अर्जित करने का एक सरल और महत्वपूर्ण तरीका है। इसमें धन, वस्तु, या समय देना शामिल है। सेवा करना परोपकार का एक और महत्वपूर्ण रूप है। धर्मार्थ कार्य करना पुण्य अर्जित करने का एक और तरीका है। 12 व्रतों का पालन करना तीसरा पुण्य है। दूसरों के लिए अच्छी भावना रखना जैसे कि सभी प्राणियों के लिए प्रेम और करुणा रखना पुण्य है। यह मन की शुद्धता को बढ़ावा देता है और शांति और खुशी को लाता है। अष्टमी चतुर्दशी के दिन उपवास करना चौथा पुण्य है। मुनिश्री बोले, आधा घंटा या एक घंटा जैन धर्म के शास्त्रों को रोजना पढ़ना चाहिए। इस मौके पर फर्स्ट लेडी श्रीमती वीना जैन, श्रीमती ऋचा जैन, वीसी प्रो. वीके जैन, प्रो. एसके जैन, डॉ. अक्षय जैन आदि की उल्लेखनीय मौजूदगी रही।
संत भवन साक्षी बना वैराग्य का
केश लोंचन जैन मुनियों की तपस्या की अद्वितीय परंपरा में शामिल है। प्रवर्तक मुनि श्री 108 सहज सागर जी मुनिराज ने भी टीएमयू के संत भवन में अपने केश लौंच करके इसी परम्परा का निर्वाहन किया। इस अवसर पर संत भवन में आस्था की बयार बही। राजस्थान की कुमारी दिशी जैन ने केश लोंच के दौरान सुमधुर आवाज में भक्ति गीत जैसे आज से अपना एक वादा रहा, जिंदगी के इस मोड पर, मेरे गुरुवर के बिना आदि प्रस्तुत करके श्रावक और श्राविकाओं का मन मोह लिया। उल्लेखनीय है, केश लांेचन में बाल बिना किसी औजार के हाथों से ही खींचकर निकाले जाते हैं। यह प्रक्रिया केवल शारीरिक पीड़ा नहीं, बल्कि सांसारिक मोह और भौतिक आकर्षणों से पूर्णतः विरक्ति का प्रतीक है। केश लोंचन आत्म-नियंत्रण, सहिष्णुता और वैराग्य की चरम अभिव्यक्ति है।
.

 
                                             
                                             
                                            