मुरादाबाद जिले की सभी 6 सीटों पर यह है चुनावी समीकरण

युवा-राजनीति

उमेश लव, मुरादाबाद। मुरादाबाद जनपद की कुल छह सीटों में से दो पर भाजपा ने परचम फहराया था तो चार सीटों पर सपा ने कब्जा जमाया था। हालांकि, इस चुनाव में भाजपा-सपा के सामने जीती हुई एक-एक सीटें कायम रखने की बड़ी चुनौती होगी क्योंकि समाजवादी पार्टी में अपने दो विधायकों के टिकट काट दिए हैं और दोनों ने ही हाथ और हाथी का दामन थाम लिया है।

लोकसभा चुनाव में भाजपा ने गंवा दी सीट 

चुनौतियों की एक झलक 2019 के लोकसभा चुनाव में मिल भी गई थी। पूरे देश में मोदी लहर चल रही थी। फिर भी मुरादाबाद ऐसा जिला रहा जहां भाजपा के कुंवर सर्वेश भगवा पताका नहीं फहरा पाए थे। ऐसे में भगवा खेमे के लिए यहां के चुनावी समीकरणों को साधना चुनौतीपूर्ण है। बहरहाल, जनता की नब्ज पर हाथ रखने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मुरादाबाद के कई दौरे कर चुके हैं। 

विकास हुआ लेकिन बहुत कुछ बाकी

चुनावी मैदान के हालात के बाद अब बात विकास और मुद्दों की। मुरादाबाद शहर के बीच से गुजरें तो 667 मीटर लंबा लोकोशेड पुल विकास की गवाही देता है। मुरादाबाद से टिहरी तक छह लेन वाले हाईवे के लिए जमीन अधिग्रहण की कवायद भी चल रही है। गंगा एक्सप्रेसवे के लिए भी जमीन अधिग्रहण का काम शुरू हो गया है। वहीं, दिल्ली-बरेली हाईवे का चौड़ीकरण का काम चल रहा है। बिजनौर से दिल्ली एवं उत्तराखंड मार्ग का चौड़ीकरण भी होना है। गंगा नदी पर पुल बन गया है। पर, दूसरी ओर मुरादाबाद भर में रामगंगा नदी बरसात के महीने में आफत का सबब बनती है। तटबंधों की मांग इससे प्रभावित सभी जिलों में होती रही है। गंगा की कटान और बाढ़ पूरे जिले को प्रभावित करती रहती है। वहीं, हवाई अड्डे से घरेलू उड़ानें शुरू नहीं हो पाई हैं। हालांकि, मार्च तक इसे शुरू करने के दावे हैं।

चुनौतियां बहुत हैं सत्तारूढ़ पार्टी की राह में 

चुनाव में क्या मुद्दे अहम होंगे, इस सवाल पर सूफी इस्लामिक बोर्ड के राष्ट्रीय प्रवक्ता कशिश वारसी कहते हैं, सबसे बड़ा मुद्दा तो रोजगार ही होगा। दलील देते हैं कि युवाओं को नौकरियां नहीं मिल रही हैं। कोरोना के बाद हालत और खराब हो गई। प्रदेश में लोगों की आर्थिक स्थिति गड़बड़ है। ऐसे में चुनाव में नौकरियों को लेकर सवाल तो उठेंगे ही। साफ है कि इससे सत्तारूढ़ पार्टी की चुनौतियां बढ़ेंगी। छात्रा इशिका कहती हैं कि युवा, मजदूर खास तौर से पीतल भट्ठियों में काम करने वाले मजदूर परेशान हैं। इसका असर चुनाव में दिखेगा। जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता हर किशोर कहते हैं, किसान परेशान हैं तो युवाओं के सामने नौकरी का संकट है। इस बार विपक्ष के पास सत्ता हासिल करने का मौका है। लेकिन ऐसा नहीं है कि सारी आवाजें इन जैसी ही हों। छात्रा गुलनाज कहती हैं कि सरकार ने कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर अच्छा काम किया है। मुस्लिम महिला महक कहती हैं, पिछले साढ़े चार साल में माहौल में फर्क आया है। कानून-व्यवस्था दुरुस्त हुई है। महिला सशक्तीकरण पर काम हुआ है। भाजपा को लाभ मिलेगा। हमें ऐसी ही सरकार को सपोर्ट करना होगा। 

निर्यात तो बढ़ा… पर कई मांगें नहीं हुईं पूरी

रोजगार को लेकर चिंता जिले में कारोबारियों के अपने मुद्दे हैं। हालांकि चुनाव के सवाल पर वे बहुत नपी-तुली और संयत भाषा में जवाब देते हैं।  मुरादाबाद से पीतल, तांबे के गिफ्ट एवं अन्य सजावटी सामानों का विश्व भर में निर्यात होता है। खासतौर पर अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, मध्य पूर्व एशिया में मुरादाबाद की धाक है। कारोबारियों का कहना है कि पिछले पांच सालों में कारोबार तो बढ़ा, पर मुद्दे जस के तस हैं। मुरादाबाद हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के महासचिव अवधेश अग्रवाल कहते हैं कि इंडस्ट्रियल एरिया विकसित करने, ईएसआई हॉस्पिटल की मांगें अभी पूरी नहीं हुई हैं। 

1993 से मुरादाबाद देहात सीट पर बंद है भाजपा का खाता

1957 में पहली बार अस्तित्व में आई मुरादाबाद ग्रामीण विधानसभा सीट का अपना इतिहास रहा है। इस सीट पर हुए अब तक के 16 विधानसभा चुनावों में से 12 बार मुस्लिम विधायक जीते। 1993 में भाजपा को यहां से पहली बार सफलता मिली थी। अयोध्या लहर में सुरेश प्रताप सिंह चुनाव जीत गए थे। उसके बाद से भाजपा यहां जीत का स्वाद चखने के लिए तरस ही रही है। 

सीटों का गणित मुरादाबाद (6 सीटें)

मुरादाबाद : भाजपा के रितेश गुप्ता विधायक हैं और वही भाजपा के प्रत्याशी हैं। यहां जातिगत आंकड़े देखे तो मुस्लिम करीब 2 लाख, वैश्य 65 हजार, अनुसूचित जातियां 50 हजार, सैनी 22 हजार, ब्राह्मण व क्षत्रिय 15-15 हजार। वैसे मैं यहां भाजपा के रितेश गुप्ता का मुकाबला समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी पूर्व विधायक हाजी यूसुफ अंसारी, कांग्रेस के हाजी रिजवान कुरैशी और बसपा से इरशाद सैफी से है।

मुरादाबाद देहात : सपा के हाजी इकराम कुरेशी विधायक हैं जो टिकट ना मिलने पर कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं और चुनावी समर में है लेकिन सपा ने यहां कारोबारी नासिर कुरेशी को मैदान में उतारा है भाजपा के यहां जाने-माने शिक्षाविद और कोठीवाल डेंटल कॉलेज के डायरेक्टर डॉक्टर के के मिश्रा मैदान में है जबकि बसपा से अकील चौधरी लेकिन अगर जातिगत समीकरण देखें तो मुस्लिम करीब 2.03 लाख, जाटव 28 हजार, सैनी 22 हजार, ब्राह्मण 13.5 हजार, वैश्य 12.5 हजार, पाल 12 हजार। ऐसे में भाजपा यहां मुस्लिम वोटों के बिखराब की उम्मीद में है।

कुंदरकी : सपा के मोहम्मद रिजवान विधायक हैं। यह भी टिकट काटे जाने के बाद बहुजन समाज पार्टी का दामन थाम चुके हैं यहां भाजपा से कमल प्रजापति मैदान में है जबकि सपा के प्रत्याशी जियाउर रहमान वर्क सपा सांसद डॉक्टर शफीक उर रहमान वर्क के पोत्र हैं और उन पर बाहरी प्रत्याशी होने का आरोप है। जातिगत समीकरण मेंं मुस्लिम 2.20 लाख, अनुसूचित जातियां 54 हजार, क्षत्रिय 25 हजार, सैनी 24 हजार, लोधी राजपूत 15 हजार, यादव 11 हजार हैं। 

बिलारी : सपा के मोहम्मद फईम विधायक हैं। और इनके मुकाबले पर भाजपा ने परमेश्वर लाल सैनी को मैदान में उतारा है। बसपा से यहां अनिल चौधरी, कांग्रेसी कल्पना सिंह मैदान में है। जातिगत समीकरण में मुस्लिम करीब 1.05 लाख, जाटव व अन्य अनुसूचित जातियां 85 हजार, यादव 40 हजार, जाट 20 हजार, क्षत्रिय 15 हजार, ब्राह्मण 8 हजार है। 

ठाकुरद्वारा : सपा के नवाबजान खां विधायक हैं। इनके मुकाबले यहां भाजपा ने अजय प्रताप सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है और यह भाजपा के पूर्व सांसद कुंवर सर्वेश के करीबी बताए जा रहे हैं। इसके अलावा बसपा से मुजाहिद अली और कांग्रेसी सलमा आगा भी मैदान में है लेकिन यहां कहा जाता है कि जिस पर पूर्व सांसद कुंवर सर्वेश का हाथ हो वही विधानसभा में पहुंचता है। इस बार भी उन्होंने खुद के लिए टिकट मांगा था। जातिगत समीकरण मेंं यहा मुस्लिम करीब 70 हजार, क्षत्रिय व चौहान 60 हजार, जाटव 36 हजार, सैनी 30 हजार है। 

कांठ : भाजपा के राजेश कुमार सिंह उर्फ चुन्नू विधायक हैं। यहां बसपा से आफाक अली खान, कांग्रेस से मोहम्मद इसरार, सपा से पूर्व मंत्री कमाल अख्तर चुनाव मैदान में है और भाजपा और सपा दोनों ही प्रत्याशियों का विरोध भी हो रहा है। जातिगत समीकरण मेंं मुस्लिम करीब 1.20 लाख, जाटव 40 हजार, जाट व विश्नोई 30 हजार, सैनी 28 हजार, चौहान 15 हजार, ब्राह्मण 10 हजार है।

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