यूपी का चुनाव अब हिन्दू-मुसलमान से देशप्रेमी बनाम देशद्रोही हो गया

Uttar Pradesh युवा-राजनीति

(देवब्रत त्रिपाठी देव, साहित्यकार एवं स्तंभकार की कलम से)

कोउ नृप होई हमें का हानी
हमारे देश में आये दिन किसी न किसी राज्य में किसी न किसी तरह का चुनाव होता रहता है। इन दिनों देश के 5 राज्य उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर, गोआ, पंजाब में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। जहाँ मुख्यतः भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन आदि क्षेत्रीय पार्टियां भी मैदान में हैं। वैसे तो सभी पार्टियां अपने चुनाव प्रचार में कोई कसर नही छोड़ना चाहती हैं। सभी ताबड़तोड़ रैली, जनसभा, रोड शो, वर्चुअल आदि सभी प्रचार माध्यमों का सहारा ले रही हैं। पार्टियों ने लोक गायकों भोजपुरी और बॉलीवुड गायकों का भी सहारा लिया है वही सबसे ज्यादा चर्चा में बिहार की नेहा सिंह राठौर हैं जिन्होंने मूल मुद्दों को उठा कर सत्ता पक्ष से जवाब मांगा है और कमजोर विपक्ष को बल दिया है। जनता तो सब जानती है आज की हो या पहले की किंतु जनता तो भोली है उसे प्रत्यासी से कोई लेना देना नही रहता वह भावनात्मक रूप से पार्टी का सिंबल उसके मुख्यमंत्री चेहरे या लीडर को देख कर वोट करती है। जनता का कुछ वर्ग है जो प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया और तमाम स्टार प्रचारकों के भाषणों से भ्रमित हो भटक जाती है जिसे मूलभूत जरूरतों और मुद्दों से कोई लेना देना नही होता।
जनता का ओपिनियन माने तो गोआ और पंजाब में आम आदमी पार्टी की स्थित मजबूत होगी ऐसा अनुमान है। मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी को बहुमत मिलने के आसार हैं। उत्तराखंड का इतिहास था कि सत्ताधारी पार्टी ने कभी दोहराव नही किया। इन सभी राज्यों में विशेष उत्तर प्रदेश का चुनाव काफी रोचक है जहाँ से सीधे दिल्ली का रास्ता तय होता है। यूपी के चुनाव में किसान आंदोलन हावी न हो इसलिए दबाव वश प्रधानमंत्री को किसान बिल वापस लेना पड़ा। हाँ ये अलग बात है कि मजबूत प्रधानमंत्री ने अब तक अपने किसी भी फैसले या बिल को वापस नही लिया। किसानों का भाग्य बदलने वाले किसान बिल को केंद्रीय कृषि मंत्री, भाजपा शासित राज्यो के मुख्यमंत्री, कृषि मंत्री और भाजपा कार्यकर्ताओं प्रवक्ताओं ने सरल तरीके से किसानों के बीच नही रख पाए। किसान बिल के बाद गौशालाओं की अव्यवस्था और प्रायोजित तरीके से छोड़े जा रहे अन्ना जानवर जिनसे किसान परेशान है उसकी फसल नष्ट हो रही है। भाजपा के काम न करने वाले नेगेटिव छवि के 150 से ज्यादा विधायक जिनका टिकट कटना तय था। वही ऐसा बिल्कुल नही हुआ। पार्टी ने पुराने प्रत्याशियों पर ही भरोसा जताया अचानक कुछ दल बदलू नेताओ के दल बदलने से चुनाव जातिगत मुद्दे की तरफ भटक गया। कर्नाटका के कॉलेज में हिजाब विवाद से यूपी चुनाव ने धार्मिक रंग ले लिया जिसे ओवैसी और योगी चुनाव के शुरुआती दिनों से देने का प्रयास कर रहे थे। अभी ये थमा ही नही केजरीवाल को कथित खालिस्तान समर्थकों से मिले समर्थन से देश और यूपी का चुनाव अब हिन्दू मुसलमान से देशप्रेमी और देशद्रोही बनाम हो गया है।
तमाम समाचार पत्रों, चैनलों और प्राइवेट सर्वे एजेंसियों द्वारा अलग अलग ओपिनियन पोल में अनुमानित चुनाव परिणाम दिखाए जा चुके हैं। बहुजन समाज पार्टी के सतीश चंद्र मिश्र ने पूरे यूपी में सत्ताधारी पार्टी से नाराज ब्राह्मणों को साधने के लिए ताबड़तोड़ रैलियां करते है जो की चुनाव के जोर पकड़ते ही खो जाते है हालांकि कहा जाता है 2007 में मायावती ने सतीशचंद्र मिश्र के नेतृत्व में ब्राह्मण भाईचारा सम्मेलन कर ही पूर्णबहुमत से सत्ता पाई थी। हाल ही में समाजवादी पार्टी के समर्थन में प्रचार करने आई ममता बनर्जी ने एक जनसभा की जिसमें फुटबाल उछाल कर बंगाल में खेला होबे के बाद यूपी में खेला होबे का नारा दिया। देखा जाय तो ममता जैसा नेता यूपी में नही है जो खुल कर सामने बैटिंग कर पाए। कांग्रेस की प्रियंका गांधी ने लड़की हूँ लड़ सकती हूँ के नारे के साथ जो शुरुआत की थी वो धीरे धीरे धीमी पड़ गईं हालांकि कांग्रेस ने इसबार यूपी में वादे अनुसार 40 फीसदी महिलाओं को टिकट दिया है।


यूपी के राजनैतिक इतिहास बात करें तो पहले गठबंधन से रही बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती मुख्यमंत्री रही चौथी बार पूर्णबहुमत से मुख्यमंत्री बनती हैं इसके बाद लगातार गठबंधन से समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह जी मुख्यमंत्री रहे और चौथी बार समाजवादी पार्टी पूर्णबहुमत से सत्ता में आई और अखिलेश मुख्यमंत्री बनें, वही लगातार 3 बार गठबंधन से भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री और चौथी बार पूर्णबहुमत से भारतीय जनता पार्टी के योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनें। पूर्व में यूपी की जनता विगत 30 वर्षों से ज्यादा गठबंधन सत्ता का स्वाद चख यूपी को बहुत पीछे कर दिया था। अब विकास को प्रथम मानकर यूपी की जनता विगत 15 वर्षों से लगातार बदल बदल कर पूर्णबहुमत वाली सत्ता का स्वाद चख रही है। लगातार पूर्णबहुमत से बसपा सुप्रीमो मायावती इसके बाद सपा सुप्रीमो अखिलेश फिर भाजपा से योगी आदित्यनाथ को अब किसे ये 10 मार्च को पता चलेगा। हां, कांग्रेस सुप्रीमों, प्रियंका, स्टार प्रचारक और प्रत्यासियो को मेहनत कर जनता को दिए गए सभी पार्टियों को पूर्णबहुमत मौके को भुनाना चाहिए। यदि यूपी नही तो केंद्र अभी दूर है कांग्रेस के लिये। आने वाले समय मे कांग्रेस की जगह और भाजपा का विकल्प आम आदमी पार्टी होगी।
जनता के आरोप तो कई पार्टियों के ऊपर है जैसे कि आज भी एक पार्टी में बिना भारीभरकम पैसों दिए टिकट नही मिलता या रविदास या मुसलमान छोड़ किसी को टिकट नही मिलता। एक पार्टी में सिर्फ गुंडों, अपराधियों या यादव और मुसलमानों को ही टिकट मिलता है। एक बड़ी पार्टी जहाँ कोई भी किसी भी पार्टी का बड़ा जिताऊ आयातित नेता आते ही टिकट मिल जाता है या क्षत्रिय को टिकट आसानी से मिल जाता है। एक पार्टी ऐसी भी है जहाँ आज भी चुनाव लड़ने के लिए पैसे मिलते हैं इस पार्टी के प्रत्यासी जीतने के लिए नही पैसे मिल रहे इसलिए खड़े होते हैं।
खैर जो भी हो जनता कहती है हमें इससे क्या लेना देना है। जनता का मानना है कि पूज्य तुलसीदास जी ने लिखा है कि सत्ता किसी की भी हो हमें तो परिवार चलाने के लिए वही करना है जो करते आ रहे। जब अयोध्या में श्री रामचंद्र का राज्याभिषेक हो रहा था तब मंथरा ने कैकेयी से बोला कि

“कोउ नृप होइ हमैं का हानी,
चेरि छाड़ि अब होब की रानी”

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