ग्राम्य विकास के पुरोधा सुरेन्द्र सिंह चौहान

India Uttar Pradesh Uttarakhand तेरी-मेरी कहानी शिक्षा-जॉब

महावीर सिघंल, लव इंडिया। गांव का विकास केवल सरकारी योजनाओं से नहीं हो सकता। इसके लिए तो ग्रामवासियों की सुप्त शक्ति को जगाना होगा। म.प्र. के नरसिंहपुर जिले में स्थित मोहद ग्राम के निवासी श्री सुरेन्द्र सिंह चौहान ने इस विचार को व्यवहार रूप में परिणत कर अपने गांव को आदर्श बनाकर दिखाया।‘भैयाजी’ के नाम से प्रसिद्ध श्री सुरेन्द्र सिंह का जन्म सात अगस्त, 1933 को ग्राम मोहद में हुआ था। 1950 से 54 तक जबलपुर में पढ़ते समय वे संघ के स्वयंसेवक बने।

इसके बाद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से उन्होंने अंग्रेजी में स्वर्ण पदक लेकर एम.ए. किया। वे आठ वर्ष तक एक डिग्री काॅलिज में प्राध्यापक भी रहे; पर उनके मन में अपने गांव के विकास की ललक थी। अतः नौकरी छोड़कर वे गांव आ गये और खेतीबाड़ी में लग गये।संघ की शाखा के प्रति अत्यधिक श्रद्धा होने के कारण उन्होंने गांव की शाखा को ही ग्राम्य विकास का माध्यम बनाया। अंग्रेजी के विद्वान होने पर भी वे व्यवहार में हिन्दी और संस्कृत का ही प्रयोग करते थे। उनके प्रयास से गांव के सब लोग संस्कृत सीख गये। उनका लेख मोती जैसा सुंदर था।

संघ में उन्होंने अपने गांव और जिले के कार्यवाह से लेकर महाकौशल प्रांत के सहकार्यवाह और फिर अखिल भारतीय सह सेवाप्रमुख तक की जिम्मेदारी निभाई। मधुर वाणी और हंसमुख स्वभाव के धनी सुरेन्द्र जी की गांव में बहुत विशाल पुश्तैनी खेती थी। उसमें सभी जाति-वर्ग के लोग काम करते थे। वे उन्हें अपने परिवार का सदस्य मानकर उनके दुख-सुख में शामिल होते थे। छुआछूत और ऊंच-नीच आदि से वे मीलों दूर थे। वे कई वर्ष तक गांव के निर्विवाद सरपंच रहे।

समाजसेवी अन्ना हजारे की प्रेरणा से संघ ने भी ग्राम्य विकास का काम हाथ में लिया तथा हर जिले में एक गांव को आदर्श बनाने की योजना बनाई; पर इससे बहुत पूर्व सुरेन्द्र जी स्वप्रेरणा से यह काम कर रहे थे। उनके गांव में कन्याएं रक्षाबंधन पर पेड़ों को राखी बांधती थीं। इससे हजारों पेड़ बच गये। फ्लश के शौचालय बनने से खुले में शौच जाना बंद हुआ। पर्यावरण शुद्धि के लिए घर में, सड़क के किनारे तथा गांव की फालतू भूमि पर फलदार वृक्ष लगवाये। बच्चे के जन्म पर पेड़ लगाने की प्रथा प्रारम्भ हुई।

हर घर में तुलसी, फुलवाड़ी एवं गाय, बाहरी दीवार पर ॐ तथा स्वस्तिक के चिन्ह, गोबर गैस के संयंत्र एवं निर्धूम चूल्हे, हर गली में कूड़ेदान, रासायनिक खाद एवं कीटनाशक रहित जैविक खेती आदि प्रयोगों से भी लाभ हुआ। हर इंच भूमि को सिंचित किया गया। विद्यालय में प्रेरक वाक्य लिखवाये गये। अध्यापकों के नियमित आने से छात्र अनुशासित हुए और शिक्षा का स्तर सुधर गया। घरेलू विवाद गांव में ही निबटाये जाने लगे। 53 प्रकार के ग्राम आधारित लघु उद्योग भी खोले गये। उनके गांव में कोई धूम्रपान या नशा नहीं करता था।

ग्राम विकास की सरकारी योजना का अर्थ केवल आर्थिक विकास ही होता है; पर सुरेन्द्र जी ने इससे आगे नैतिकता, संस्कार तथा ‘गांव एक परिवार’ जैसे विचारों पर काम किया। उनके गांव को देखने दूर-दूर से लोग आते थे। इन अनुभवों का लाभ सबको मिले, इसके लिए उन्हें संघ में अखिल भारतीय सह सेवाप्रमुख बनाया गया। उन्होंने किरण, उदय तथा प्रभात ग्राम नामक तीन श्रेणी बनाकर ‘ग्राम्य विकास’ को सामाजिक अध्ययन का विषय बना दिया।

विख्यात समाजसेवी नानाजी देशमुख ने चित्रकूट में ‘ग्रामोदय विश्वविद्यालय’ की स्थापना की थी। उन्होंने सुरेन्द्र जी के सफल प्रयोग तथा ग्राम्य विकास के प्रति उनका समर्पण देखकर उन्हें इस वि.वि. का उपकुलपति बनाया। सुरेन्द्र जी ने चार वर्ष तक इस जिम्मेदारी को निभाया। आदर्श ग्राम, स्वावलम्बी ग्राम तथा आदर्श हिन्दू परिवार के अनेक नये प्रयोगों के सूत्रधार श्री सुरेन्द्र सिंह चौहान का एक फरवरी, 2013 को अपने गांव मोहद में ही निधन हुआ।

(संदर्भ : पांचजन्य/आर्गनाइजर/वनस्वर..आदि)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *