देवों के देव महादेव के अभिषेक से होते हैं सारे काम

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आचार्य पं शोभित शास्त्री। रुद्राभिषेक तो कभी भी किया जाए यह बड़ा ही शुभ फलदायी माना गया है। लेकिन सावन में इसका महत्व कई गुणा होता है। शिवपुराण के रुद्रसंहिता में बताया गया है कि सावन के महीने में रुद्राभिषेक करना विशेष फलदायी है। रुद्राभिषेक में भगवान शिव का पवित्र स्नान कराकर पूजा-अर्चना की जाती है। यह सनातन धर्म में सबसे प्रभावशाली पूजा मानी जाती है जिसका फल तत्काल प्राप्त होता है। इससे भगवान शिव प्रसन्न होकर भक्तों के सभी कष्टों का अंत करते हैं और सुख-शांति और समृद्धि प्रदान करते हैं। लेकिन इस वर्ष कोरोना संकट के कारण कई शिवालयों में रुद्राभिषेक की अनुमति नही है। ऐसे में आप घर पर भी यह पवित्र अभिषेक कर सकते हैं। यजुर्वेद में घर पर रुद्राभिषेक करने की विधि के बारे में बताया गया है, जो अत्यंत लाभप्रद है।

आइए जानते हैं घर पर किस तरह करें सावन में भगवान शिव का रुद्राभिषेक
सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रुद्र की आत्मा में हैं। जैसा की मंत्र से साफ है कि रूद्र ही सर्वशक्तिमान हैं। रुद्राभिषेक में भगवान शिव के रुद्र अवतार की पूजा की जाती है। यह भगवान शिव का प्रचंड रूप है समस्त ग्रह बाधाओं और समस्याओं का नाश करता है। सावन के महीने में रुद्र ही सृष्टि का कार्य संभालते हैं, इसलिए इस समय रुद्राभिषेक अधिक और तुरंत फलदायी होता है। इससे अशुभ ग्रहों के प्रभाव से जीवन में चल रही परेशानी भी दूर होती है, परिवार में सुख समृद्धि और शांति आती है।
कैसे करें घर में रुद्राभिषेक में मिट्टी का शिवलिंग बनाएं

अगर पारद शिवलिंग अथवा नरमदेश्वर शिवलिंग से करे तो यह बहुत अच्छा है। पहले भगवान गणेश की पूजाकर उनसे सफलता का आशीर्वाद मांगें। फिर माता पार्वती, भगवान गणेश, माता लक्ष्मी, सूर्यदेव, अग्निदेव, ब्रह्मदेव, पृथ्वी माता और गंगा माता को पूजा में शामिल करें। इसके बाद भगवान शिव, का रूद्राभिषेक करे
वेद ब्रह्म के विग्रह रूप अपौरुषेय, अनादि, अजन्मा ईश्वर शिव के श्वाँस से विनिर्गत हुए हैं इसीलिए वेद मन्त्रों के द्वारा ही शिव का पूजन, अभिषेक, जप, यज्ञ आदि करके प्राणी शिव की कृपा सहजता से प्राप्त कर लेता है। श्रीरुद्राभिषेक करने या वेदपाठी विद्वानों के द्वारा करवाने के बाद प्राणी को फिर किसी भी पूजा की आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि ब्रह्मविष्णुमयो रुद्रः, अर्थात- ब्रह्मा और विष्णु भी रूद्रमय ही हैं। शिवपुराण के अनुसार वेदों का सारतत्व, ‘रुद्राष्टाध्यायी’ है जिसमें आठ अध्यायों में कुल 176 मंत्र हैं। इन्हीं मंत्रो के द्वारा ‘त्रिगुण’ स्वरुप रूद्र का पूजनाभिषेक किया जाता है। शास्त्रों में भी कहा गया गया है कि ‘शिवः अभिषेक प्रियः’ अर्थात शिव को अभिषेक अति प्रिय है।
रुद्राष्टाध्यायी के प्रथम अध्याय के ‘शिवसंकल्पमस्तु’ आदि मंत्रों से ‘गणेश’ जी का स्तवन किया गया है। द्वितीय अध्याय पुरुषसूक्त में नारायण ‘श्रीविष्णु’ का स्तवन है। तृतीय अध्याय के मंत्रों द्वारा देवराज ‘इंद्र’ तथा चतुर्थ अध्याय के मंत्रों से भगवान ‘सूर्य’ का स्तवन किया गया है। रुद्राष्टाध्यायी का पंचम अध्याय स्वयं रूद्र रूप है इसे शतरुद्रिय भी कहते हैं। इसके छठे अध्याय में सोम का स्तवन है। इसी प्रकार सातवें अध्याय में ‘मरुत’ और आठवें अध्याय में ‘अग्नि’ का स्तवन किया गया है। अन्य असंख्य देवी देवताओं के स्तवनभी इन्ही पाठ मंत्रों में समाहित है अतः श्रीरूद्र का अभिषेक करने से सभी देवों का भी अभिषेक करने का फल उसी क्षण मिल जाता है। रुद्राभिषेक में सृष्टि की समस्त मनोकामनायें पूर्ण करने की शक्ति है।
रुद्राभिषेक आप सावन सोमवार, प्रदोष व्रत और शिवरात्रि पर बिना विचार कर सकते हैं। हर महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया और नवमी, कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा और अष्टमी और अमावस्या, कृष्ण पक्ष की चतुर्थी और एकादशी, शुक्ल पक्ष की पंचमी और द्वादशी तिथि, कृष्ण पक्ष की पंचमी और द्वादशी, शुक्ल पक्ष की षष्ठी और त्रयोदशी तिथि को रुद्राभिषेक करना मंगलकारी माना जाता है।

त शास्त्रीरुद्राभिषेक तो कभी भी किया जाए यह बड़ा ही शुभ फलदायी माना गया है। लेकिन सावन में इसका महत्व कई गुणा होता है। शिवपुराण के रुद्रसंहिता में बताया गया है कि सावन के महीने में रुद्राभिषेक करना विशेष फलदायी है। रुद्राभिषेक में भगवान शिव का पवित्र स्नान कराकर पूजा-अर्चना की जाती है। यह सनातन धर्म में सबसे प्रभावशाली पूजा मानी जाती है जिसका फल तत्काल प्राप्त होता है। इससे भगवान शिव प्रसन्न होकर भक्तों के सभी कष्टों का अंत करते हैं और सुख-शांति और समृद्धि प्रदान करते हैं। लेकिन इस वर्ष कोरोना संकट के कारण कई शिवालयों में रुद्राभिषेक की अनुमति नही है। ऐसे में आप घर पर भी यह पवित्र अभिषेक कर सकते हैं। यजुर्वेद में घर पर रुद्राभिषेक करने की विधि के बारे में बताया गया है, जो अत्यंत लाभप्रद है।

आइए जानते हैं घर पर किस तरह करें सावन में भगवान शिव का रुद्राभिषेक सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रुद्र की आत्मा में हैं। जैसा की मंत्र से साफ है कि रूद्र ही सर्वशक्तिमान हैं। रुद्राभिषेक में भगवान शिव के रुद्र अवतार की पूजा की जाती है। यह भगवान शिव का प्रचंड रूप है समस्त ग्रह बाधाओं और समस्याओं का नाश करता है।

सावन के महीने में रुद्र ही सृष्टि का कार्य संभालते हैं, इसलिए इस समय रुद्राभिषेक अधिक और तुरंत फलदायी होता है। इससे अशुभ ग्रहों के प्रभाव से जीवन में चल रही परेशानी भी दूर होती है, परिवार में सुख समृद्धि और शांति आती है। कैसे करें घर में रुद्राभिषेक में मिट्टी का शिवलिंग बनाएं, अगर पारद शिवलिंग अथवा नरमदेश्वर शिवलिंग से करे तो यह बहुत अच्छा है।

पहले भगवान गणेश की पूजाकर उनसे सफलता का आशीर्वाद मांगें। फिर माता पार्वती, भगवान गणेश, माता लक्ष्मी, सूर्यदेव, अग्निदेव, ब्रह्मदेव, पृथ्वी माता और गंगा माता को पूजा में शामिल करें। इसके बाद भगवान शिव, का रूद्राभिषेक करेवेद ब्रह्म के विग्रह रूप अपौरुषेय, अनादि, अजन्मा ईश्वर शिव के श्वाँस से विनिर्गत हुए हैं इसीलिए वेद मन्त्रों के द्वारा ही शिव का पूजन, अभिषेक, जप, यज्ञ आदि करके प्राणी शिव की कृपा सहजता से प्राप्त कर लेता है।

श्रीरुद्राभिषेक करने या वेदपाठी विद्वानों के द्वारा करवाने के बाद प्राणी को फिर किसी भी पूजा की आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि ब्रह्मविष्णुमयो रुद्रः, अर्थात- ब्रह्मा और विष्णु भी रूद्रमय ही हैं। शिवपुराण के अनुसार वेदों का सारतत्व, ‘रुद्राष्टाध्यायी’ है जिसमें आठ अध्यायों में कुल 176 मंत्र हैं। इन्हीं मंत्रो के द्वारा ‘त्रिगुण’ स्वरुप रूद्र का पूजनाभिषेक किया जाता है।

शास्त्रों में भी कहा गया गया है कि ‘शिवः अभिषेक प्रियः’ अर्थात शिव को अभिषेक अति प्रिय है। रुद्राष्टाध्यायी के प्रथम अध्याय के ‘शिवसंकल्पमस्तु’ आदि मंत्रों से ‘गणेश’ जी का स्तवन किया गया है। द्वितीय अध्याय पुरुषसूक्त में नारायण ‘श्रीविष्णु’ का स्तवन है। तृतीय अध्याय के मंत्रों द्वारा देवराज ‘इंद्र’ तथा चतुर्थ अध्याय के मंत्रों से भगवान ‘सूर्य’ का स्तवन किया गया है। रुद्राष्टाध्यायी का पंचम अध्याय स्वयं रूद्र रूप है इसे शतरुद्रिय भी कहते हैं। इसके छठे अध्याय में सोम का स्तवन है।

इसी प्रकार सातवें अध्याय में ‘मरुत’ और आठवें अध्याय में ‘अग्नि’ का स्तवन किया गया है। अन्य असंख्य देवी देवताओं के स्तवनभी इन्ही पाठ मंत्रों में समाहित है। अतः श्रीरूद्र का अभिषेक करने से सभी देवों का भी अभिषेक करने का फल उसी क्षण मिल जाता है। रुद्राभिषेक में सृष्टि की समस्त मनोकामनायें पूर्ण करने की शक्ति है।

रुद्राभिषेक आप सावन सोमवार, प्रदोष व्रत और शिवरात्रि पर बिना विचार कर सकते हैं। हर महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया और नवमी, कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा और अष्टमी और अमावस्या, कृष्ण पक्ष की चतुर्थी और एकादशी, शुक्ल पक्ष की पंचमी और द्वादशी तिथि, कृष्ण पक्ष की पंचमी और द्वादशी, शुक्ल पक्ष की षष्ठी और त्रयोदशी तिथि को रुद्राभिषेक करना मंगलकारी माना जाता है।

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