25 जून 75 की मध्य रात्रि से ही देश में लगी थी इमरजेंसी और समाचारों को चेक करते थे इंटेलीजेंस के अधिकारी

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लेखक निर्भय सक्सेना

निर्भय सक्सेना। देश मे आज से 47 वर्ष पूर्व 25 जून 1975 को आपातकाल लगाया गया था। उस समय मैं दैनिक विश्व मानव के संपादकीय विभाग में था। देश में 25 जून 1975 की मध्य रात्रि में इमरजेंसी की घोषणा होते ही दिल्ली के कई दैनिक समाचार पत्रों ने संपादकीय वाला स्थान खाली छोड़कर अपना विरोध जताया था। जिस पर कुछ संपादकों की गिरफ्तारी भी हुई थी।

देश में इमरजेंसी को लोकतंत्र पर काला धब्बा कहा गया था। बरेली में चाय घाट फाइव स्टार पर कवि कन्हैया लाल बाजपेई की कविता “बरुआ भैया कुछ तो जुगत बतावो जा राज नारायण को मीसा में अंदर करवावो” खूब चर्चित हुई। कुछ राजनैतिक लोग अपनी गिरफ्तारी से भूमिगत हो गये थेl कुछ डरे हुए भी थे। अब यह बात अलग है कि देश में इमरजेंसी हटने के बाद उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह ने उस काल में बंदी लोगो को लोकतंत्र सेनानी घोषित कर उनकी पेंशन भी बांध दी थी।

बरेली में दैनिक विश्व मानव का प्रबंधन लक्ष्मण दयाल सिंघल के हाथ मे था जो कांग्रेस के पक्षधर भी थे।

मुझे याद है कि दैनिक विश्व मानव के समाचार संपादक जितेंद्र भारद्वाज एवम रामगोपाल शर्मा ने संपादकीय के सभी लोगो से देश में लगी इमरजेंसी वाले काल में सरकार के विरोध में कुछ नही लिखने के निर्देश दिए थे। संपादकीय टीम को ज्ञानसागर वर्मा, अशोक जी, कन्हइया लाल बाजपेई देखते थे। सिटी न्यूज़ को स्वतंत्र सक्सेना, राकेश कोहरवाल, निर्भय सक्सेना, कमल शर्मा, सतीश कमल आदि देखते थे। रात में इंटेलिजेंस के अधिकारी हर खबर पर पास की मोहर लगते थे। जिला सूचना अधिकारी वसंत वर्मा जी भी रात में शहर की न्यूज़ पर नजर रखते थे कि कही कोई गलत खबर नही छप जाए। एक दिन बाद जनसंघ के नेता सत्य प्रकाश अग्रवाल जेल भेजे गए। रिपोर्टर ने देर रात यह न्यूज़ ज्ञान सागर वर्मा से घसीटा राइटिंग में लिखवाई।

मैंने इंटेलिजेंस टीम को अन्य न्यूज़ के साथ भेज दी और अपठनीय होने पर वह गिरफ्तारी की न्यूज़ पर पास की मोहर झटके में लग कर वापस आ गई। जब सुबह सत्य प्रकाश अग्रवाल की न्यूज़ दैनिक विश्व मानव पेपर में छपी तो बरेली सहित राजधानी लखनऊ तक हड़कंप मच गया। संपादक जी ने न्यूज़ पास होने की मोहर लगी कॉपी सूचना अधिकारी को दिखा दी। जिस पर उस इंटेलिजेंस अधिकारी को हटाकर दूसरा व्यक्ति भेज गया।

बरेली में उस समय जॉर्ज फर्नाडीस के साप्ताहिक ‘प्रतिपक्ष’ नामक समाचार पत्र के प्रतिनिधि वीरेन डंगवाल थे जो रात में डरे हुए घबराहट में देर रात आकर दैनिक विश्व मानव की प्रिंटिंग मशीन के नीचे सोते थे। आपातकाल में मैने सुभाषनगर गुरुद्वारा में जाकर वहां रह रहे लोगो से भी बात की थी।

कवि कन्हैया लाल बाजपेयी जी की इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा के दिए गए निर्णय के बाद लिखी कविता उन दिनों चाय घाट ‘फाइव स्टार’ पर बहुत सुनी जाती थी। वह थी … ‘बरुआ भैया कुछ तो जुगत बताओ, जा राजनारायण को जल्दी ही जेल भिजवावो’।

स्मरण रहे इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जग मोहन लाल सिन्हा ने राजनारायण बनाम श्रीमती इन्दिरा गाँधी केस की सुनवाई करने के बाद 12 जून 1975 के अपने ऐतिहासिक फैसले में रायबरेली संसदीय क्षेत्र से श्रीमती इन्दिरा गाँधी का निर्वाचन भ्रष्ट साधनों के उपयोग के कारण रद्द कर दिया था। जस्टिस जग मोहन लाल सिंह के द्वारा इस अभूतपूर्व फैसले से भारत की राजनीति में भूचाल आ गया था।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अदालत के इस निर्णय से काफी गहरा धक्का लगा था और इसी निर्णय से प्रधानमंत्री के सलाहकारों ने देश में इमरजेंसी लगाने की भूमिका बना दी और आखिर 25 जून को 1975 को देश पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी थोप कर देश के प्रमुख विपक्षी राजनेताओं को जेल में डाल दिया गया था। इस साहसिक फैसले को सुनाने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज माननीय जगमोहन लाल सिन्हा का बरेली के गुलाबनगर से भी गहरा नाता रहा था।

उन्होंने बरेली कालेज में उच्च शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने सन् 1943 से 1955 तक बरेली में अधिवक्ता के रूप में कार्य किया। आज वे हमारे मध्य नहीं हैं मगर अपने इस ऐतिहासिक और निष्पक्ष फैसले के लिए वे हमेशा याद किए जायेंगे।इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद सभी को यह उम्मीद थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी नैतिकता के आधार पर प्रधानमन्त्री पद से इस्तीफा दे देंगी, मगर अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं के कारण उन्होंने ऐसा नहीं किया। जिससे विपक्ष हमलावर हो गया।

उनके इस्तीफे की मांग करते हुए पूरे विपक्ष ने देशभर में धरना, प्रदर्शन एवं रैलियां करना शुरू कर दीं। पूरे देश में श्रीमती इन्दिरा गांधी के खिलाफ आन्दोलन तेज होता गया। विपक्ष द्वारा चलाए जा रहे इस आन्दोलन की अगुवाई लोकनायक जयप्रकाश नारायण कर रहे थे। आन्दोलन को मिल रहे अपार जनसमर्थन को देखकर सत्ता का सिंहासन डोलने लगा।25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में विपक्ष ने एक विशाल रैली का आयोजन किया।

इस रैली में अपार जनसमूह उमड़ पड़ा। लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने विशाल सभा को सम्बोधित करते हुए दिल को झकझोर देने वाला भाषण दिया।इस सबसे बौखलाकर श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने अपनी कुर्सी बचाने की खातिर संविधान के अनुच्छेद 352 का दुरुपयोग करते हुए पूरे देश में आपातकाल लगाने की घोषणा कर दी। आपातकाल लगाने के लिए सारे आवश्यक प्रावधानों को दरकिनार करते हुए यह घोषणा की गई थी।

प्रावधानों के तहत देश के आधे से अधिक प्रान्त जब मांग करें, नोट भेजे कि कानून व्यवस्था संकट में है और केन्द्रीय कैबिनेट सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करे तब आपातकाल लगता है। इन सबका उल्लंघन करते हुए इन्दिरा गाँधी ने आपातकाल लगाने का प्रस्ताव मंजूरी हेतु राष्ट्रपति के पास भेजा। तत्कालीन राष्ट्रपति श्री फखरुद्दीन अली अहमद ने भी संवैधानिक औपचारिकताओं के निर्वाह न होने के बावजूद आपातकाल की घोषणा पर यत्रवत् हस्ताक्षर कर दिए। इस प्रकार चन्द घन्टों में ही सारी कार्यवाही निपटाकर देश पर आपातकाल थोप दिया गया। आपातकाल की यह घोषणा 25 जून 1975 को रात के 12 बजे की गई।

वर्तमान की नई पीढ़ी को लोकतन्त्र पर आई इस अमावस्या की शायद ही कोई जानकारी होगी मगर उस समय जो लोग किशोर, नौजवान या प्रौढ़ रहे होंगे उनके मन में इमर्जेन्सी की यादें आज भी सिहरन पैदा कर देती हैं। बहुत कठिन दौर था। पूरे देश में दमघोंटू माहौल था। कब किसे आकर पुलिस वाले गिरफ्तार कर लें किसी को कुछ पता नहीं था। अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबन्दी लगी हुई थी।पूरे देश में गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो गया। संत-महन्त, राजनेता, समाजसेवी, छात्र नेता, पत्रकार सभी को मुल्जिम बनाकर जेलों में ठूंस दिया गया। इमरर्जेन्सी में किशोरों तक को नहीं बख्शा गया। उस समय के प्रतिपक्ष के नेता जेलों में ठूंस दिए गये।

लोकनायक जय प्रकाश नारायण, अटल बिहारी बाजपेई, लालकृष्ण आडवाणी, मोरारजी देसाई, मुरली मनोहर जोशी, जार्ज फर्नांडीज, चोधरी चरण सिंह, राजनारायण सहित सभी प्रमुख नेताओं को जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया।कोई अपील नहीं, कोई न्यायिक व्यवस्था नहीं, न्यायालयों के सारे अधिकार समाप्त। लाखों लोगों की गिरफ्तारी की गई। प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई। 250 से अधिक पत्रकार जेल में डाल दिए गये। निरपराध नागरिकों के साथ उत्पीड़न का ऐसा तांडव जनता ने कभी नहीं देखा था।

देश के लाखों लोग जेल में सलाखों के पीछे कैद कर दिए गये। चारों तरफ भय और दहशत का माहौल था।प्रेस की स्वतंत्रता का गला घोट दिया गया। छापेखानों की बिजली काट दी गई। समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में छापने वाली सामग्री का प्रकाशन से पूर्व भी परीक्षण होने लगा। यदि किसी अखबार की सामग्री में आपातकाल की नीतियों की आलोचना शामिल पाई जाती तो उसका प्रकाशन बन्द कर दिया जाता था। आपातकाल लगाते समय श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने रेडियो पर भाषण देते हुए कहा था कि आपातकाल बहुत कम समय के लिए होगा।

देश मे लोकतंत्र की बहाली के लिए हुए इस आंदोलन में देश में कई नेताओ का निधन भी हुआ।आपातकाल के 19 महीनों तक देश में एक अजीब सी खामोशी रही जिससे श्रीमती इन्दिरा गाँधी को लगा कि विपक्ष का यह प्रचार खोखला ही था, जिसे अखबारों एवम आन्दोलनकारियों ने हवा हवाई बना दिया है।

बाद में श्रीमती इंदिरा गांधी ने 18 जनवरी 1977 को देश मे आम चुनाव की घोषणा कर दी।एक बार फिर 21 जनवरी 1977 के बाद देश मे एक बार फिर राजनैतिक घटना चक्र तेजी से घुमा। विपक्ष के चार दलों के विलय के बाद एक नया राजनीतिक दल के रूप में जनता पार्टी बनी। जनता पार्टी का देश भर में प्रचार हो गया। इस चुनाव में जनता पार्टी को बड़ी सफलता मिली। श्रीमती इंदिरा गांधी की पार्टी चुनाव हार गई। इसके बाद 22 मार्च 1977 में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की अगुआई में देश में जनता पार्टी की सरकार बनी और लोकतंत्र की पुनः बहाली हुई।

इसके बाद श्रीमती गांधी जी ने देश भर में दौरा शुरू कर अपनी बात को सही बताया था। उसी के तहत इंदिरा गांधी जी बरेली भी आई थीं। बरेली के त्रिशूल एयरपोर्ट पर मेरी उनसे काफी लंबी वार्ता भी हुई थी। इसके बाद मेने प्रदेश सरकार के मंत्री राम सिंह खन्ना की एंबेसडर कार से श्रीमती इंदिरा गांधी जी का नानकमत्ता का दौरा भी कबर किया था। में साथ अशोक वैश्य एवम एक स्वीडिश टीवी पत्रकार भी था। इसके कुछ समय बाद ही आपसी क्लेश में जनता पार्टी की सरकार जल्दी ही गिर गई। और फिर कांग्रेस सरकार बापस आ गई थी।

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