इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने मुरादाबाद दंगे की 40 साल पुरानी जांच रिपोर्ट को नकारा, कहा- न्यायालय की निगरानी में दोबारा हो जांच
लव इंडिया, मुरादाबाद। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने जिलाधिकारी के माध्यम से राष्ट्रपति को भेजें मांग पत्र में 13 अगस्त 1980 को मुरादाबाद ईदगाह गोली कांड में सैकड़ों मासूम व बेगुनाह लोगों को ईदगाह में नमाज पढ़ते हुए मौत हुई जिसमें मासूम बच्चे भी शमिल थे। यह साम्प्रदायिक दंगा नहीं था बल्कि पुलिस व प्रशासन द्वारा मुसलमानों के खिलाफ एक पूर्व नियोजित दमनात्मक व आलिसाना कार्यवाही थी। इस ईदगाह गोली कांड की जांच के लिए जस्टिस एम पी सक्सेना आयोग का गठन किया गया था जिसकी रिपोर्ट चालीस वर्षों बाद यूपी सरकार द्वारा सदन में रखी गई है जिसमे प्रशासन व पुलिस को क्लीन चिट दी गई है जबकि मुस्लिम लीग के डॉ शमीम अहमद खान को मुल्जिम बनाया गया है। ये रिपोर्ट सरासर झूठ तथ्यों पर आधारित है तथा असल मुजरिम पुलिस व प्रशासन को बचाने के लिए बनाई गई है। मुस्लिम लीग इस रिपोर्ट को रद्द करती है।
इस दौरान, वक्आताओं ने कहा कि आज 43 वर्ष गुजरने के बाद भी इन मजलूमों को कोई इंसाफ नहीं मिला. न तो गोली कांड के मुजरिमों को कोई सजा मिली और न ही मृतकों के वारिसान को कोई मुआवजा दिया गया. एक संवैधानिक एवं लोकतांत्रिक देश के लिए यह बड़ी शर्मनाक स्थिति है. केवल मुरादाबाद ही नहीं बल्कि मुजफ्फरनगर नसबंदी कांड 1976, मेरठ के मलियाना हाशिमपुरा कांड 1987 के मजलूमों को भी आज तक कोई इंसाफ नहीं मिला. आज तक देश में जितनी भी सरकारें आई है उन्होंने भी इन मजलूमों को इंसाफ देने के लिए कुछ नहीं किया.
ऐसे में मुस्लिम लीग सरकार द्वारा मुसलमानों के साथ किये जा रहे पक्षपात पर विरोध प्रकट करती है और मुतालबा करती है कि मुरादाबाद ईदगाह गोली कांड 13 अगस्त 1980 की उच्च स्तरीय अदालती जांच कराई जाए, इस गोली कांड के मुजरिमों के खिलाफ मुकदमे कायम कर कार्यवाही की जाए, इस गोली कांड के शहीदों के वारिसान को उचित मुआवजा दिया जाए, इन शहीदों के वारिसान को सरकारी नौकरियां दी जाए।
इस दौरान , कौसर हयात खान राष्ट्रीय सह सचिव, इशरत हुसैन एडवोकेट जिलाध्यक्ष, मौहम्मद असरार शहर अध्यक्ष, जमाल आलम शहर महासचिव, गालिन अली शहर सचिव आदि रहे।