‘ बच्चों से बतियाती हैं शिव अवतार सरस की कविताएं’

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लव इंडिया, मुरादाबाद। प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष शिव अवतार रस्तोगी सरस के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से तीन दिवसीय ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया । साहित्यकारों ने कहा कि हिन्दी बाल साहित्य में शिव अवतार रस्तोगी सरस का उल्लेखनीय योगदान रहा है। उनकी बाल कविताएं बच्चों से सीधा संवाद करती हैं, बतियाती हैं और बचपन को आधुनिक बाल परिवेश में रचती हैं। अपने बाल काव्य के माध्यम से वे अत्यंत सहजता के साथ बच्चों को संस्कारित भी करती हैं ।


मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की बाइसवीं कड़ी के तहत आयोजित कार्यक्रम के संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि 4 जनवरी 1939 को संभल के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में जन्में शिव अवतार रस्तोगी सरस की काव्य कृति अभिनव मधुशाला के अनेक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं । इसके अतिरिक्त उनकी प्रकाशित कृतियों में पंकज पराग, हमारे कवि और लेखक, नोकझोंक, सरस संवादिकाएं , पर्यावरण पचीसी, मैं और मेरे उत्प्रेरक और सरस बालबूझ पहेलियां उल्लेखनीय हैं। गुदड़ी के लाल, राजर्षि महिमा, सरस-संवादिका शतक ,मकरंद मोदी,सरस बाल गीत आपकी अप्रकाशित काव्य कृतियां हैं । उनका निधन 2 फरवरी 2021 को हुआ।

उनके सुपुत्र पुनीत रस्तोगी ने कहा कि बाल साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें डा मैमूना खातून बाल साहित्य सम्मान’ (चन्द्रपुर, महाराष्ट्र),भूपनारायण दीक्षित बाल साहित्य- सम्मान’ (हरदोई) मिला। इसके अतिरिक्त उन्हें रंभा ज्योति, हिंदी प्रकाश मंच, सागर तरंग प्रकाशन, संस्कार भारती, राष्ट्रभाषा विकास सम्मेलन, बाल-प्रहरी, अभिव्यंजना, ज्ञान-मंदिर पुस्तकालय, तथा अखिल भारतीय साहित्य कला मंच आदि संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है।

प्रख्यात बाल साहित्यकार राजीव सक्सेना ने कहा सरस जी की बाल कविताएं केवल बाल मनोभावों का सूक्ष्म चित्रण ही नहीं हैं, अपितु वे हमारे बचपन का ‘टोटल रिकॉल’ हैं। शिव अवतार सरस की आत्मकथा मैं और मेरे उत्प्रेरक के संपादक बृजेंद्र वत्स ने कहा उनके बाल साहित्य में बच्चों की कोमल भावनाओं, संवेदनाओं व मन:स्थिति का दर्शन होता है।

डॉ अशोक कुमार रस्तोगी ( अफजलगढ़) ने कहा संवाद शैली में रची उनकी बाल कविताएं बच्चों के जीवन को नैतिकता, मानवीयता व आदर्शवाद से भरपूर बनाती हैं। रंगकर्मी धन सिंह धनेंद्र ने कहा बाल रंगमंच के क्षेत्र में उनकी कविताएं उपयोगी है। उनका सहजता के साथ मंचन किया जा सकता है। त्यागी अशोका कृष्णम(संभल )ने कहा उनकी बाल पहेलियां मन को गुदगुदाती हैं।

डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा उनका साहित्य नैतिकता चारित्रिक उदारता व मानवीय संवेदना से परिपूर्ण है और भारतीय संस्कृति से साक्षात्कार कराता है। अशोक विश्नोई ने कहा कि उनकी रचनाएं सामाजिक,राजनीतिक व प्राकृतिक विसंगतियों पर प्रहार भी करती है। राजीव प्रखर ने कहा उनकी कृति हमारी कवि और लेखक विद्यार्थियों में अत्यंत लोकप्रिय हुई इसमें साहित्यकारों का संपूर्ण परिचय कुंडलियों के रूप में था जो सरलता से याद हो जाता था। मयंक शर्मा ने कहा साहित्यकार होने के साथ-साथ वे हिंदी के कुशल अध्यापक के रूप में भी विद्यार्थियों के प्रेरणा स्रोत रहे। श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा वे सरल, सहज, सरस और सौम्य व्यक्तित्व के स्वामी थे।

हेमा तिवारी भट्ट ने कविता के माध्यम से श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा.. सरस संवादिकाएं भाये, कवि और लेखक पथ दिखाए, नोकझोंक कायदा चाहिए, हमें सरस संपदा चाहिए। अशोक विद्रोही ने कहा कि उनकी कृति अभिनव मधुशाला समाज को एक नई दिशा प्रदान करती है। मनोरमा शर्मा (अमरोहा ) ने कहा कि उनकी कविताओं में बाल सुलभ जिज्ञासा और समाधान दोनों ही बड़ी कोमलता से परिलक्षित होती हैं। डॉ अनिल शर्मा अनिल (धामपुर) ने कहा वह शिक्षक के रूप में बच्चों के मनोविज्ञान को बखूबी जानते थे और उसी के अनुसार प्रभावशाली बाल साहित्य की रचना करते थे।


कार्यक्रम में वैशाली रस्तोगी (जकार्ता, इंडोनेशिया), रवि प्रकाश (रामपुर), डॉ प्रीति हुंकार, नृपेंद्र शर्मा सागर(ठाकुरद्वारा), आमोद कुमार अग्रवाल(दिल्ली), कंचन खन्ना, राम किशोर वर्मा (रामपुर), सूर्यकांत द्विवेदी (मेरठ), डॉ अर्चना गुप्ता, डॉ पुनीत कुमार, नकुल त्यागी, राजेश अग्रवाल, प्रदीप गुप्ता (मुंबई), शुभांगी, धैर्य शील आदि ने विचार रखे। आभार रश्मि रस्तोगी, ऋचा रस्तोगी और पुनीत कुमार रस्तोगी ने व्यक्त किया ।

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