PFI के विस्तार को रोकें, अपने देश को बचाएं और सरकार का समर्थन करें : काशिश वारसी

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लव इंडिया, मुरादाबाद। सूफी इस्लामिक बोर्ड के राष्ट्रीय प्रवक्ता कशिश वारसी ने प्रेस को जारी एक बयान में देशवासियों को ईद मिलादुन्नबी की मुबारकबाद देते हुए पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को भारत सरकार द्वारा प्रतिबंध करने का स्वागत किया है वारसी के अनुसार सूफी इस्लामिक बोर्ड तथा वह खुद स्वयं काफी समय से पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के विरुद्ध एलान-ए-जंग किए हुए थे और लगातार देश की सरकार से इस को बैन करने की मांग कर रहे थे क्योंकि देश में कई जगह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के सदस्यों के विरुद्ध आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे तथा लगातार पीएफआई के संसद देश के खिलाफ साजिश रच के इस्लाम को बदनाम कर रहे थे। सरकार द्वारा इनका बैंन किया जाना एक उचित कदम है और उनकी लड़ाई की कामयाबी और काम रानी है।

कशिश वारसी ने कहा कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया अपने शुरूआती दिनों से ही सांप्रदायिक संघर्ष और राजनैतिक हत्याओं में संलिप्त रहा है। सन् 2015 में केरल के एक प्रोफेसर टी जे जोसफ जिन पर ईशनिंदा का आरोप लगा था, उनके हाथों को पीएफआई कार्यकर्ताओं ने काट दिया था | इस संदर्भ में पीएफआई के 13 कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया गया था। कुछ साल पहले कुन्नूर में एक एबीवीपी कार्यकर्ता की हत्या के आरोप में 6 पी.एफ.आई. कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था तथा एर्नाकुलम के महाराजा कॉलेज के एस.एफ.आई नेता अभिमन्यू की कथित हत्या के आरोप में भी 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। सन् 2014 में केरल सरकार ने उच्च न्यायालय में एक शपथ पत्र दायर किया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पीएफआई कम से कम 27 राजनैतिक हत्याओं, 86 हत्या के प्रयास व 125 अन्य सांप्रदायिक हिंसाओं में शामिल है।यह सूची अनंत है।

हादिया जहान प्रकरण से लेकर एनएसजी कमांडो शेखर राठौर की हत्या ने बेंगलूरू हिंसा से लेकर दिल्ली दंगों में सांप्रदायिक हिंसा में आग में घी डालने का काम किया है । इस संगठन को अपने माहिर तंत्रों से निर्दोषों की हत्या के लिए जाना जाता है। लेकिन अब पढ़े-लिखे मुसलमानों और बुद्धिजीवियों को निर्णय लेना है कि, उन्हें अपने पूर्वजों की राह पर चलकर पीएफआई जैसे कट्टर हिंसक संगठन का बहिष्कार करना है या ऐसे संगठन के झूठे एवं सस्ते बहकावे में आना है।

पीएफआई अपने आपको एक नव-सामाजिक आंदोलन का जनक बताता है, जो कि अल्पसंख्यक समुदाय व दलितों की आवाज बुलंद करता है। पीएफआई दावा करता है कि 22 राज्यों में इसकी इकाइयां है। गुप्तचर एजेंसियां यह स्वीकार करती हैं कि इस संगठन का विकास प्रत्यक्ष रूप से असाधारण है जिस प्रकार इसने अपने आपको वंचित वर्ग के रक्षक के तौर पर स्थापित किया है। पीएफआई के सफल दृष्टांत, इसे मुख्यतः अमीर खाड़ी देशों से धन एकत्रित करने में मदद करते हैं। ऐसी स्थिति क्यों बनी? इसका उत्तर धार्मिक मुसलमानों की निष्क्रियता है।

पीएफआई द्वारा विभिन्न मुद्दों पर प्रदर्शित जुझारूपन और इसके उग्रवादी रवैये ने बहुत सारे युवाओं को आकर्षित किया है और यह अब बढ़ता ही जा रहा है।जैसा कि एक महान विचारक ने कहा था कि ‘पहला कदम सबसे कठिन होता है, लेकिन जब तक इसे लिया ना जाए तब तक प्रगति की धारणा केवल एक धारणा ही रहती है कोई उपलब्धि नहीं।सरकार ने अपने हिस्से का काम पीएफआई पर प्रतिबंध लगाकर कर दिया है। अब गेंद अदालत के पाले में है। हमें यह निर्णय करना है कि पीएफआई के विस्तार को रोकें, अपने देश को बचाएं और सरकार का समर्थन करें, पीएफआई को अच्छा मैदान तैयार न करने दें ताकि सांप्रदायिक अशांति न फैले और इस्लाम को बदनामी न मिले और हमारे प्यारे देश को विनाश से बचाया जा सके।

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