पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व के संभल को तीर्थ नगरी घोषित किया जाए


लव इंडिया, मुरादाबाद। भारतीय इतिहास संकलन समिति के प्रांत संगठन मंत्री डॉ कुलदीप ने प्रेस वार्ता में केंद्र सरकार/उत्तर प्रदेश सरकार संभल को तत्काल तीर्थ नगरी घोषित कर इसका समुचित विकास करने की दिशा में आवश्यक कदम उठाए।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद मंडल के अंतर्गत आने वाला संभल वर्तमान में एक गुमनाम पौराणिक तीर्थ स्थान है। अयोध्या ,मथुरा, काशी, नैमिषारण्य का नाम जब तीर्थ नगरी के रूप में आता है तो इसमें, इसके महत्व के कारण संभल का नाम भी उतना ही महत्वपूर्ण है । संभल के ऐतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक महत्व का उल्लेख अनेक ऐतिहासिक ग्रन्थों और धर्म ग्रंथो में प्रमुखता से आता है। संभल को लेकर लिखी गई पुस्तक संभल महात्म्य के अनुसार सभल में वह सभी तीर्थ मौजूद हैं जो काशी में है। अनेक धर्म ग्रंथो के अनुसार मान्यता के रूप में कलयुग में भगवान विष्णु का कल्कि अवतार भी इसी संभल में होना बताया गया है।

कहा कि यह अत्यंत चिंता का विषय है कि इतने अधिक महत्व के स्थल संभल की अभी तक उपेक्षा ही हुई है। इस कारण सभी लोग इस नगर की धार्मिक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व से अनभिज्ञ हैं। संभल महात्म्य में इस नगर की प्राचीनता और पौराणिक महत्व को विस्तार से बताया गया है जिसका प्रकाशन देव वाणी प्रकाशन नई दिल्ली ने किया। संभल महात्म्य पुस्तक के अनुसार 81000 श्लोकों वाले स्कंद पुराण के भूखंड में संभल के महत्व का उल्लेख है। 27 अध्याय वाले इस पुस्तक में संभल के 68 तीर्थ और 19 कूपों का उल्लेख है। स्कंद पुराण के भूमि खंड के जिसे भूमिवराह खंड भी कहा जाता है, कल्कि भगवान विष्णु के अवतार की भविष्यवाणी की गई है। इसी प्रकार श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार चर अचर जगत के गुरुसर्वांतर आत्मा परमात्मा धर्म और धर्मआत्माओं की रक्षा के लिए अवतार ग्रहण करते हैं। संभल में विष्णुयश ब्राह्मण के घर श्री कल्कि विष्णु भगवान का अवतार होगा।

वक्ताओं ने कहा कि सृष्टि के आरंभ में ही 68 तीर्थ और 19 कूपों सहित संभल का निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किया था, वेदों में इन्हें त्वष्टा कहा गया है। महर्षि पाणिनी व्याकरण के अनुसार तक्ष और त्वक्षु यह दो धातु शिल्प क्रिया के अर्थ में प्रयुक्त होती हैं। विष्णु भगवान के कल्कि अवतार की भूमि होने के कारण सृष्टि के आरंभ में ही विश्वकर्मा ने संभल को बसाकर इसमें तीर्थो और कूपों का निर्माण किया था। सतयुग में संभल का नाम सत्यव्रत, त्रेता में महादगिरि ,द्वापर में पिंगल और कलयुग में संभल के नाम से इसकी प्रसिद्धि हुई। चारों युगों में संभल के पूरवोक्त नाम का उल्लेख डॉक्टर ब्रजमोहन साख्यधर की पुस्तक संभल ए हिस्टॉरिकल सर्वे में किया है, युगअनुसार संभल के इन नाम का उल्लेख डॉक्टर साख्यधर ने 1981 में प्रकाशित एफ .अलेक्जेंडर फाइनल रिपोर्ट ओंन द सेटलमेंट आफ द मुरादाबाद डिस्टिक पुस्तक में किया है। डॉक्टर साख्यधर नेशनल आर्काइव ऑफ़ इंडिया में पदाधिकारी रहे हैं और उनकी यह पुस्तक 1971 में नई दिल्ली से प्रकाशित हुई। प्रसिद्ध इतिहासकार एवं पुरातत्ववेत्ता प्रोफेसर विघ्नेश कुमार ने अपनी पुस्तक युग युगीन संभल में भी संभल की पौराणिक और ऐतिहासिकता का उल्लेख किया है। दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज चौहान की उप राजधानी के रूप में भी संभल ने प्रसिद्धि पाई। प्रसिद्ध विद्वान पुरातत्व वेत्ता सुरेंद्र मोहन मिश्र की पुस्तक इतिहास के झरोखे से संभल, सुरेश चंद्र शर्मा की पुस्तक संभल नगर का प्राचीन इतिहास मे भी इसका उल्लेख आता है। 1911व 1968 में प्रकाशित जिला गजेटियर मुरादाबाद में भी संभल के प्रमुख तीर्थ के संबंध में उल्लेख है। कल्कि पुराण के तृतीय अंश 18 अध्याय के श्लोक चार में कहा गया है कि 68 तीर्थ जहां संभव है वही संभल कल्कि विष्णु भगवान के चरणों के प्रताप से मोक्ष का धाम है। इतना ही नहीं दशम गुरु पूज्यपाद श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने दशम ग्रंथ में संभल में होने वाले कल्कि विष्णु भगवान की प्रार्थना में 16 सवैया छंद लिखे हैं। सूचना व जनसंपर्क विभाग मुरादाबाद के अधिकारी मिस्टर जोशी द्वारा 1990 में भी प्रकाशित स्मारिका में संभल के पौराणिक महत्व का उल्लेख किया गया था।


अतः संभल के पुराणकालीन, ऐतिहासिक ,धार्मिक, सांस्कृतिक महत्व के प्रमाण प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है ।इसलिए भारत के गौरवशाली इतिहास और संस्कृति के संवर्धन ,संरक्षण में सतत रूप से विगत 4 दशकों से अधिक समय से कार्यरत इतिहास संकलन समिति की जिला इकाई सभल प्रबल रूप से मांग करती है कि …

  1. केंद्र सरकार/उत्तर प्रदेश सरकार संभल को तत्काल तीर्थ नगरी घोषित कर इसका समुचित विकास करने की दिशा में आवश्यक कदम उठाए।
  2. संभल में स्थापित सभी 68 तीर्थ एवं 19 कूपों एवं अन्य तीर्थ की खोज कर उनका सुंदरीकरण कराया जाए।
  3. संभल की प्राचीन ऐतिहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित किया जाए।
  4. संभल के प्राचीन गौरवशाली इतिहास को पुनर्स्थापित करने हेतु यथोचित कदम उठाए जाएं।

5.समस्त तीर्थ समस्त तीर्थ को चिन्हित कर उनके जीर्णोद्धार और सौंदर्य करण हेतु यथाशीघ्र आवश्यक कदम उठाए जाए। इसमें भारतीय इतिहास संकलन समिति शासन स्तर से पूर्ण सहयोग करेगी।
6. संभल तीर्थ सर्किट बनाने हेतु यथाशीघ्र आवश्यक कदम उठाये जाए।
7. शासन स्तर से तुरंत संभल पर्यटन विकास परिषद का गठन हो। जिसके अंतर्गत उक्त कार्य निष्पादित किए जा सके।

संभल के तथाकथित शाही जामा मस्जिद बनाम हरिहर मंदिर विवाद पर अपना पक्ष रखते हुए डॉ. कुलदीप कुमार ने कहा कि कैला देवी धाम के महंत श्री ऋषि राज गिरी जी महाराज भारतीय इतिहास संकलन समिति संभल के सम्मानित संरक्षक हैं। और जिम्मेदार संगठन संचालक भी है। इतिहास संकलन समिति के निर्देशन में ही वह संभल के सांस्कृतिक व ऐतिहासिक उत्थान के लिए व पर्यटन क्षेत्र के विकास के लिए जो कार्य कर रहे हैं उसके लिए समिति उनके हर कदम के साथ है। और हरिहर मंदिर विवाद के विषय में माननीय न्यायालय का जो भी निर्णय होगा वह भारतीय इतिहास संकलन समिति के लिए, हिंदू समाज के लिए तथा सभी राष्ट्र प्रेमियों के लिए स्वीकार होगा।

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