ICAR-IVRI: प्राकृतिक खेती, उन्नत नस्ल के मवेशियों के पशुपालन से ही किसानों की आय में वृद्धि संभव : प्रो. बघेल

निर्भय सक्सेना, बरेली। देश भर के पशु चिकित्सा निदेशालयों के निदेशकों के साथ प्रथम फालो अप इंटरफेस मीट-2025 में देश के 26 राज्यों तथा 5 केंद्र शासित प्रदेशों के पशुपालन विभाग के निदेशकों एवं आयुक्तों ने भाग लिया। मीट में कहा गया कि प्राकृतिक खेती, उन्नत नस्ल के मवेशियों के पशुपालन, कृत्रिम गर्भाधान द्वारा केवल बछिया पैदा करने वाले सिमेन का प्रयोग करने से ही किसानों की आय में वृद्धि हो सकती हैl

बछिया पैदा करने वाले सिमेन का प्रयोग करने से ही किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है


भारतीय आई सी ए आर-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर (Indian ICAR-Indian Veterinary Research Institute, Izatnagar) द्वारा आहूत इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. एस. पी. सिंह. बघेल, राज्य मंत्री मत्स्य, पशुपालन एवं डेयरी, भारत सरकार ने अपने सम्बोधन में आई वी आर आई द्वारा किये जा रहे कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह संस्थान पशुधन क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। उन्होंने राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रयोग होने वाले सभी टीके के विकास के साथ- साथ पशु रोग निगरानी रखने में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए संस्थान का आभार व्यक्त किया।
प्रो. बघेल ने एफएमडी मुक्त भारत बनाने के लिए संस्थान को और अधिक कार्य करने का आग्रह किया। इसके साथ ही उन्होने सुझाव दिया की प्राकृतिक खेती, उन्नत नस्ल के मवेशियों के द्वारा पशुपालन, कृत्रिम गर्भाधान द्वारा केवल बछिया पैदा करने वाले सिमेन का प्रयोग करने से ही किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है।

बछड़ों के बधियाकरण हेतु पशुपालकों को प्रोत्साहित करें

इसके अलावा उन्होंने ईटीटी के उपयोग से उन्नत नस्ल के पशुओं की संख्या को बढ़ावा देने और पशु चिकित्सा अधिकारियों को इस तकनीक में प्रशिक्षण देने हेतु संस्थान आगे आने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने उपस्थित देश के सभी निदेशकों से आग्रह किया कि वे संगोष्ठी के माध्यम से किसानों को सेक्स सीमन द्वारा कृत्रिम गर्भाधान हेतु प्रेरित करें एवं बछड़ों के बधियाकरण हेतु पशुपालकों को प्रोत्साहित करें जिससे नर बछड़ों की संख्या को नियंत्रित किया जा सके।

संरक्षण एवं संवर्धन में किये गये योगदान के बारे में बताया


इस अवसर पर संस्थान निदेशक डा. त्रिवेणी दत्त ने अपने उद्बोधन में संस्थान के 135 वर्षों के गौरवशाली इतिहास को रेखांकित करते हुए पशुपालन में किये गये कार्यों जिनमें टीकों को विकसित करना, बीमारियों की पहचान हेतु किट विकसित करना एवं विविध प्रकार के पशु उत्पादों के विकास के साथ-साथ पशुधन संरक्षण एवं संवर्धन में किये गये योगदान के बारे में बताया। उन्होंने कहा की संस्थान उच्च शिक्षा के एक विश्वनीय केन्द्र के रूप में जाना जाता है जो पूरे को अतिकुशल मानव संसाधन उपलब्ध कराता है।

सहभागिता करने के लिए आभार

डा. दत्त ने नई शिक्षा नीति के तहत डीम्ड विश्वविद्यालय द्वारा की गई शैक्षिक पहलों का भी विवरण दिया, जिसमें चल रहे मास्टर और डॉक्टरेट डिग्री कार्यक्रमों के अलावा ओपन एंड डिस्टेंस लर्निंग (ओडीएल) कार्यक्रम, व्यावसायिक और मूल्यवर्धित पाठ्यक्रम शामिल हैं। इन प्रयासों का उद्देश्य पशुपालन में क्षेत्र के पशु चिकित्सकों और अन्य पेशेवरों के लिए निरंतर पशु चिकित्सा शिक्षा प्रदान करना है। निदेशक महोदय ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. एस.पी.सिंह. बघेल, माननीय राज्य मंत्री मत्स्य, पशुपालन एवं डेयरी, भारत सरकार सहित सभी राज्यों के पशु चिकित्सा निदेशकों को इस कार्यक्रम में सहभागिता करने के लिए आभार व्यक्त किया।

विभिन्न प्रयासों का बिन्दुवार विवरण प्रस्तुत किया

संयुक्त निदेशक प्रसार शिक्षा डा. रूपसी तिवारी ने इंटरफेस मीटिंग के लिए पंजीकृत प्रतिभागियों के विवरण, मीटिंग के अधिदेश और प्रतिभागियों की अपेक्षाओं से सभा को अवगत कराया। उन्होंने 23 सितंबर, 2023 को आईसीएआर-आईवीआरआई में आयोजित अखिल भारतीय राज्य पशुपालन निदेशक इंटरफेस मीट की पहली इंटरफेस मीट से शोध योग्य मुद्दों, प्रशिक्षण आवश्यकताओं और विभिन्न प्रयोगशालाओं की स्थापना विषयों पर संस्थान द्वारा किये गये विभिन्न प्रयासों का बिन्दुवार विवरण प्रस्तुत किया।

नवाचार के माध्यम से पशु चिकित्सा पद्धतियों में सुधार

डा. तिवारी ने आगे बताया कि इस इन्टरफेस मीट के लिए छब्बीस राज्यों और पांच केंद्र शासित प्रदेशों से प्रतिभागियों ने पंजीकरण कराया। इन राज्यों ने निदान उपकरणों, रोग प्रबंधन और टिकाऊ पशुधन उत्पादन के लिए अल्पकालिक पाठ्यक्रम और तकनीकी सहायता जैसे क्षेत्रों में आईवीआरआई से विशिष्ट सहायता, टीके, रोग निदान और एलएसडी, बीटी और फुट रोट जैसी उभरती बीमारियों पर अनुसंधान और विकास का समर्थन, पशु चिकित्सकों, किसानों और पैरावेट्स के लिए प्रशिक्षण, कार्यशालाएं और प्रदर्शन यात्राएं, पशुओं और स्थानीय पशुधन जैसी प्रजातियों के लिए नस्ल सुधार, पोषण और संरक्षण प्रयासों पर सहयोगय नीति निर्माण और क्षेत्र के मुद्दों और निदान किटध् उपकरणों के विकास के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करना और नवाचार के माध्यम से पशु चिकित्सा पद्धतियों में सुधार करने के लिए संस्थान से अपेक्षा की है जिसे संस्थान द्वारा भविष्य में पूर्ण करने का प्रयास किया जायेगा।

संस्थान के टेक्नोलोजी पोर्ट फोलियो को प्रस्तुत किया

इस अवसर पर तकनीकी सत्रों का भी आयोजन किया गया जिसमें संस्थान के पशुजन स्वास्थ्य विभाग के विभागाध्यक्ष डा. किरण भीलेगांवकर द्वारा पशुधन क्षेत्र में रोगाणुरोधी प्रतिरोध का मुकाबला करने पर रणनीतियां, मानकीकरण विभाग के विभागाध्यक्ष डा. प्रणव धर द्वारा ”उभरती और सीमापारीय पशु रोग चुनौतियां, प्रभाव और रोकथाम और नियंत्रण के लिए वैश्विक रणनीतियां“ तथा पशुपोषण विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डा. सुनील जाधव द्वारा ”वैकल्पिक चारा संसाधन द्वारा पशुधन के लिए पोषण का मार्ग प्रशस्त करना“ विषय पर तथा पशुपुनरूत्पादन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. मेराज हैदर खान द्वारा पुनरूत्पादन की नवीन तकनीतियां तथा आईटीएमयू प्रभारी डा बबलू कुमार द्वारा संस्थान के टेक्नोलोजी पोर्ट फोलियो को प्रस्तुत किया।

फील्ड टेस्ट एवं पशुपालन में कृत्रिम बुद्धिमता का प्रयोग

तकनीकी सत्रों के दौरान निदेशकों ने विभिन्न शोध बिन्दुओं जैसे बीमारी अलार्म सिस्टम, ब्रुसेल्ला ग्रसित पशुओं का प्रबन्धन, वैकल्पिक फीड एवं फोडर की पहचान, एनाप्लाज्मा के टीके का विकास, थर्मोस्टेबल टीके का विकास, कीटनाशक/खरपतवार नाशक दवाओं की विषाक्तता की पहचान के लिए फील्ड टेस्ट एवं पशुपालन में कृत्रिम बुद्धिमता का प्रयोग आदि विषयों पर शोध करने का आग्रह किया।

निम्न अतिथि गण रहे मौजूद

कार्यक्रम का संचालन शल्य चिकित्सा विभाग के वैज्ञानिक डा. रोहित कुमार द्वारा किया गया जबकि धन्यवाद ज्ञापन आईटीएमयू प्रभारी डा. बबलू कुमार द्वारा दिया गया। इस अवसर पर संस्थान के संयुक्त निदेशक शोध डा. एस.के. सिंह, संयुक्त निदेशक, शैक्षणिक डा. एस.के. मेंदीरत्ता, संयुक्त निदेशक कैडराड, डा. सोहिनी डे सहित संस्थान के मुक्तेश्वर, बंग्लूरू परिसर के संयुक्त निदेशक परिसरों के प्रभारी सहित विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष उपस्थित रहे।

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