हाई कोर्ट बेंच की स्थापना की मांग को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 22 जिलों में बंद आज

🔹 यह मांग लगातार उठती रही

पश्चिम उत्तर प्रदेश (West UP) में इलाहाबाद हाई कोर्ट की बेंच (High Court Bench) की स्थापना की मांग एक दशकों पुराना मुद्दा है। यह मांग न केवल वकीलों और वादकारियों का, बल्कि क्षेत्र के आम नागरिकों का भी गंभीर मुद्दा बन चुकी है। इलाहाबाद (प्रयागराज) से सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पर न्याय के लिए मुकदमों का निपटान करना लोगों के समय, धन और श्रम का भारी खर्च बनता है, इसलिए यह मांग लगातार उठती रही है। एक बार फिर 17 दिसंबर को पश्चिम उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट की स्थापना की मांग को लेकर बंद का आह्वान किया गया है। ऐसे में सभी की निगाहें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आज के अधिवक्ता आंदोलन पर टिकी हुई हैं।


🔸 मांग कितनी पुरानी है?

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट बेंच की मांग लगभग 40–50 वर्षों से निरंतर जारी है। अधिवक्ता और नागरिक 1970–1980 के दशक से इसकी स्थापना की मांग कर रहे हैं, जब इलाहाबाद हाई कोर्ट की प्रचलित व्यवस्था के चलते पश्चिमी UP के 22 जिलों के मामलों को सुलझाने में कठिनाई होती है।


🔸 पहली बार यह मांग कहां शुरू हुई?

सबसे पहले मेरठ सहित आसपास के जिलों के वकीलों ने यह मांग जोरशोर से उठाई। मेरठ बार एसोसिएशन सहित अन्य बार एसोसिएशनों ने उच्च न्यायालय की बेंच की स्थापना को लेकर आंदोलन और धरने भी लगाए।


🔸 आंदोलन कहां से शुरू हुआ?

1981 में वकीलों ने काम का बहिष्कार और सड़क पर प्रदर्शन के माध्यम से हाई कोर्ट बेंच की मांग को सार्वजनिक रूप से उठाया था। उस समय वकीलों ने सड़कों पर उतरकर न्याय व्यवस्था में सुधार की मांग की।


🔸 कितनी बार आंदोलन हो चुका है?

उक्त मांग को लेकर पिछले चार दशकों में कई आंदोलन, वकीलों और बार एसोसिएशनों के सामूहिक धरने, ज्ञापन और विरोध रैलियाँ आयोजित हुई हैं। खास तौर पर गाज़ियाबाद, मेरठ, बुलंदशहर और बीजनौर जैसे जिलों से बार लगातार आवाज उठा चुके हैं।


🔸तत्कालीन सरकारों ने कितनी बार आश्वासन दिया?

स्थानीय और राज्य सरकारों ने कई बार आश्वासन दिए — शुरुआती दौर में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सरकारों ने 1980–90 के दशकों में इस पर ध्यान देने का वादा किया, लेकिन निष्पक्ष कार्रवाई नहीं हुई। केंद्र सरकार के दायरे में आने पर supreme सुनवाई में प्रस्ताव गया, पर वह निर्णय से बाहर बताया गया कि न्यायपालिका के प्रमुख (CJI) और केंद्र संयुक्त निर्णय लें।


🔸 मांग क्यों जरूरी है?

पश्चिमी यूपी में इलाहाबाद से हाई कोर्ट की तुलना में बहुत दूरी है — यह दूरी 700–800 किलोमीटर तक हो सकती है। इससे प्रभावित litigants (वादकारी) का समय और धन दोनों बर्बाद होता है, और गरीब वर्ग न्याय पाने में असमर्थ रह जाता है।


🔸 क्षेत्र की संख्या — कितने जिला शामिल हैं?

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लगभग 22 जिले शामिल हैं, जिनके लिए हाई कोर्ट बेंच की आवश्यकता जताई जाती है। इन जिलों में मेरठ, गाज़ियाबाद, बुलंदशहर, बागपत, हापुड़, अमरोहा, मथुरा, मुजफ्फरनगर और अन्य शामिल हैं।


🔸 इलाहाबाद हाई कोर्ट में मामलों की स्थिति

इलाहाबाद हाई कोर्ट में कुल मिलाकर लगभग 11.99 लाख से अधिक मामले (pending cases) हैं, जिनमें से एक बड़ा हिस्सा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों से संबंधित है।


🔸 इलाहाबाद बेंच और लखनऊ बेंच के अलावा विकल्प

वर्तमान में उत्तरी जिले लखनऊ हाई कोर्ट बेंच प्रदान करता है, लेकिन वह भी पश्चिम UP के लिए सुविधाजनक नहीं माना जाता। भारतीय कानून विशेषज्ञ कहते हैं कि न्याय doorstep justice के लिए स्थानीय बेंच होना आवश्यक है।


🔸 न्यायिक मंडल की दूरी का प्रभाव

पश्चिमी यूपी के वकीलों का कहना है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट करीब 800 किमी दूर है — लागत, समय और कठिनाइयों के कारण गरीब और ग्रामीण वादकारियों की पहुंच बाधित होती है।


🔸 सुप्रीम कोर्ट का रुख

सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में कहा कि High Court Bench स्थापित करना सिर्फ न्यायपालिका का विषय नहीं है, बल्कि उच्च न्यायालय की सलाह और केंद्र तथा राज्य की सहमति पर निर्भर रहता है।


🔸 पिछला आयोग की सिफारिश

पूर्व में न्यायमूर्ति जसवंत सिंह आयोग ने भी सुझाव दिया था कि पश्चिमी UP में बेंच की आवश्यकता है, पर वह आज तक लागू नहीं हो पाई।


🔸 अन्य राज्यों के उदाहरण

महाराष्ट्र में हाल ही में कई हाई कोर्ट बेंच स्थापित हुई हैं जबकि पश्चिम UP जैसा बड़ा क्षेत्र अभी भी बेंच से वंचित है।


🔸 बार एसोसिएशनों का आंदोलन

ग्रामीण बार एसोसिएशनों ने उच्च न्यायालय के समक्ष प्रदर्शन, धरना और डेली मार्च जैसे आंदोलनों का आयोजन किया है, खासकर लखनऊ और दिल्ली में भी चर्चा के रूप में।


🔸 राजनीतिक कारक और निर्णय बाधा

राजनीतिक कारणों और न्यायिक नीतियों के कारण भी इस मांग पर ठोस निर्णय नहीं लिया गया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह एक दीर्घकालिक प्रशासनिक विषय बन गया है।


🔸 कानूनी विशेषज्ञों का मत

कई वरिष्ठ न्यायविदों और पूर्व न्यायाधीशों ने यह कहा है कि पश्चिम UP को सोच-समझकर बेंच मिलनी चाहिए क्योंकि यह क्षेत्र न्यायिक संसाधनों में महत्वपूर्ण हिस्सेदार है।


🔸 न्याय तंत्र की मजबूती और बेंच की आवश्यकता

जैसा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में लाखों मामले लंबित हैं, पश्चिम UP में बेंच के बिना न्यायालयों पर बोझ उठाना कठिन होता जा रहा है।


🔸 सोशल और आर्थिक प्रभाव

पश्चिमी यूपी के वकीलों और आम जनता के अनुसार, बेंच की स्थापना से न्याय की पहुंच सस्ती और आसान होगी, जिससे गरीब लोगों को राहत मिल सकती है।


🔸 भविष्य की उम्मीदें

आंदोलन और जन आंदोलन के दबाव में जब-जब चुनाव नजदीक आए हैं, बेंच की मांग फिर जोर पकड़ती है; बाद में वह शांत हो जाती है — पर जनता की मांग अभी भी जिंदा है।


📍 मांग की शुरुआत और इतिहास

पश्चिम यूपी में हाई कोर्ट बेंच की मांग पिछले 40–50 वर्षों से चल रही है जब वकीलों और नागरिकों ने इलाहाबाद (प्रयागराज) हाई कोर्ट की एकल बेंच को चुनौती के रूप में देखा। इस अवधि में बार एसोसिएशनों ने कई बार आवाज उठाई है।


📏 दूरी की समस्या

पश्चिम यूपी के लोग प्रयागराज (इलाहाबाद) तक न्याय के लिए जाते हैं जो लगभग 700–800 किलोमीटर दूर है। इस दूरी को कभी-कभी ट्रेन या बस से पूरा करने में 5–12 घंटे तक लगते हैं — जो न्याय प्रक्रिया को धीमा बनाता है और खर्च बढ़ाता है।


🚆 यात्रा का अनुभव

रेल मार्ग से प्रयागराज पहुंचने पर यात्रियों को ट्रेन पकड़नी होती है, जैसे कि दिल्ली, मेरठ या अन्य शहरों से एक्सप्रेस/अन्य स्पेशल ट्रेनें चलती हैं, लेकिन इन्हें बुक करना और समय लेना कठिन रहता है।


🚍 सड़क यात्रा की चुनौतियाँ

बस या टैक्सी से यात्रा में दूरी अधिक होने के कारण खर्च भी अधिक होता है (टैक्सी में हजारों रुपये तक के खर्च) और समय भी 10–12 घंटे तक लगते हैं। राजमार्गों पर ट्रैफिक, रुकावटें और आराम की कमी यात्रियों को प्रभावित करती हैं।


📚 22 पश्चिम यूपी जिले — फ़ायदा क्यों?

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लगभग 22 जिलों में भारी आबादी (क़रीब 7 करोड़) है। इन जिलों से इलाहाबाद हाई कोर्ट तक केस जाने की संख्या अधिक है, और इसलिए स्थानीय बेंच की आवश्यकता महसूस होती है।


📌 प्रमुख जिले और कठिनाई

इन जिलों में मेरठ, गाज़ियाबाद, बुलंदशहर, मुरादाबाद, बागपत, हापुड़, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, शामली, सहारनपुर, मथुरा आदि शामिल हैं। इन शहरों से प्रयागराज तक का सफर बहुत लंबा होता है और इसके चलते वकीलों और वादकारियों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।


⚖️ वकीलों का आंदोलन

पश्चिमी यूपी के बार एसोसिएशन ने कई मौकों पर धरना, बंद, ज्ञापन आंदोलन किए हैं — जैसे 17 दिसंबर 2025 को मेरठ में शहर बंद का आह्वान भी हुआ। यह आंदोलन न्याय की पहुंच के मुद्दे पर व्यापक समर्थन के साथ हुआ है।


🏙️ पहले कब शुरुआत हुई?

सबसे पहली बार मेरठ और आसपास के जिलों के वकीलों ने बोला कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की दूरी बहुत ज़्यादा है, और इसके लिए दिशा-निर्देश देने की मांग पर पहला आंदोलन भी यहीं शुरू हुआ था।


🧑‍⚖️ कितनी बार आंदोलन हुए

पिछले चार दशकों में लगभग कई दर्जन बार बार एसोसिएशनों द्वारा प्रतिवर्ष आंदोलन, रथयात्रा, बंद, सीएम/प्रधानमंत्री को ज्ञापन सहित आवाज़ उठायी जा चुकी है। इनमें मेरठ, बुलंदशहर और मुजफ्फरनगर जैसे केंद्र प्रमुख रहे हैं।


🏛️ सरकारों की आश्वासन की संख्या

विभिन्न समय पर उत्तर प्रदेश सरकारों (बीजेपी और अन्य) और केंद्र की सरकारों ने वायदें किए हैं कि खंडपीठ पर विचार किया जाएगा, लेकिन अब तक स्थायी रूप से कोई निर्णय लागू नहीं हुआ है। सरकारों ने आश्वासन दिया, पर कार्ययोजनाओं का रूप नहीं लिया।


📊 इलाहाबाद हाई कोर्ट में मामले का भार

जानकारी के अनुसार, पश्चिमी यूपी से हज़ारों मुकदमे इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित हैं और इनमे लगभग 40% तक केस इसी क्षेत्र से आते हैं


🎯 सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

लोगों को न्याय के लिए खर्च, समय और श्रम दोनों भारी पड़ रहे हैं। गरीब और ग्रामीण लोग 3-4 दिन यात्रा कर मामला की अगली तारीख पर उपस्थित होने के लिए मजबूर रहते हैं, जिससे रोजगार और परिजनों का समय प्रभावित होता है।


🚉 यात्रा के साधन और विकल्प

इलाहाबाद हाई कोर्ट तक पहुंचने के लिए ट्रेन, बस और टैक्सी विकल्प में…

  • ट्रेन: प्रमुख रेल मार्गों से प्रयागराज जुड़े हैं, जिनमें कई एक्सप्रेस ट्रेनें उपलब्ध हैं और करीब 8 रेलवे स्टेशन हैं।
  • बस: UPSRTC और निजी बसें किसी-किसी दूरी पर चलती हैं।
  • टैक्सी/कार: निजी टैक्सी से दूरी जल्दी तय होती है लेकिन खर्चा अधिक होता है।

🕐 ट्रेन से यात्रा समय

पश्चिम यूपी मुख्य शहरों से प्रयागराज तक ट्रेन में लगभग 10–15 घंटे का समय लग सकता है, यह ट्रेन की गति और कनेक्टिविटी पर निर्भर करता है।


🚗 बस/कार से यात्रा

सड़क मार्ग से यात्रा में लगभग 10–13 घंटे लगते हैं और टैक्सी खर्च सामान्यत: ₹3,000–₹8,000 तक (निजी से दूरी और वाहन के हिसाब से) हो सकता है।


🛣️ दूरी और स्मार्ट नेटवर्क योजना

पश्चिम यूपी और प्रयागराज के बीच गंगा एक्सप्रेसवे जैसी परियोजनाएँ प्रस्तावित हैं, जो दूरी को घटाने और यात्रा को आसान बनाने का प्रयास हैं।


🧑‍💼 तर्क: बड़े क्षेत्र में खंडपीठ न होना न्याय की असमानता को दर्शाता

अधिवक्ताओं का कहना है कि महानगरों जैसे लखनऊ में खंडपीठ है, लेकिन पश्चिम यूपी जैसे बड़े क्षेत्र में कोई खंडपीठ न होना न्याय की असमानता को दर्शाता है।


📈 बेंच नहीं मिली तो विपक्ष इसे चुनावी मुद्दा बनाएगा

हर चुनाव से पूर्व यह मुद्दा चर्चाओं में आता है और हाइलाइट किया जाता है कि यदि बेंच नहीं मिली तो विपक्ष इसे चुनावी मुद्दा बनाएगा।


🧠 कानूनी विशेषज्ञों का मत

कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि खंडपीठ की स्थापना वकीलों और आम जनता दोनों के लिए सुलभ न्याय सुनिश्चित करेगी और न्यायिक संसाधनों पर बोझ कम करेगी।


🧭 हाई कोर्ट बेंच की मांग वर्षों से चली आ रही आज भी जिंदा

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट बेंच की मांग वर्षों से चली आ रही है। इस मांग के पीछे दूरी, खर्च, न्याय की पहुंच, आर्थिक बोझ और लंबित मामलों की संख्या प्रमुख वजहें हैं। इसे एक सामाजिक-कानूनी आंदोलन के रूप में देखा जाता है और यह आज भी जारी है।


🔸 वास्तविक नीति निर्णय आज तक नहीं लिया

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट बेंच की मांग इतिहास से चली आ रही है और इसके कई कानूनी, आर्थिक और सामाजिक कारण हैं। इस मांग में बार एसोसिएशन, वकील और सामान्य लोग लगातार आवाज़ उठा रहे हैं, पर वास्तविक नीति निर्णय आज तक नहीं लिया गया है।


नोट: समस्त फोटो फोटोग्राफर सुहेल खान और सोशल साइट्स से लिए गए हैं…

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