भगवान श्रीराम, सीता और लक्ष्मण के दंडक वन में प्रवेश का अद्भुत मंचन

बरेली। श्री रानी महालक्ष्मी बाई रामलीला समिति (पंजी.), चौधरी मोहल्ला, बरेली के तत्वावधान में चल रही श्रीरामलीला मे भगवान श्रीराम की धर्मस्थापना और ऋषि- मुनियों के मिलन से जुड़ी पावन लीलाओं का साक्षात्कार एवं भगवान श्रीराम, सीता जी और लक्ष्मण जी के दंडक वन में प्रवेश का अद्भुत मंचन किया गया।

चौधरी तालाब में गंगापार होने के बाद अब पूर्ववत की भांति रामलीला मंचन हार्टमेन मेला ग्राउंड पर हुआ। इस 458 वर्ष पुरानी रामलीला में भगवान श्रीराम द्वारा राक्षसों का वध करने की प्रतिज्ञा को लीला में दिखाया गया। कैसे राक्षसों के अत्याचारों से त्रस्त संत- महात्मा और ऋषि अपने यज्ञ पूरे नहीं कर पा रहे थे।

हर बार जब वे धर्मानुष्ठान करते, राक्षस आकर उन्हें नष्ट कर देते। इसी पीड़ा को दूर करने के लिए भगवान श्रीराम ने दृढ़ निश्चय किया और प्रतिज्ञा ली कि “अब राक्षसों के अत्याचार सहन नहीं किए जाएँगे। धर्म की रक्षा और साधु- संतों के कल्याण के लिए राक्षसों का संहार अवश्य होगा।”


यह संवाद जब मंच पर प्रस्तुत हुआ, तो पूरा रामलीला मैदान जय श्रीराम के गगनभेदी नारों से गूंज उठा। दर्शकों ने इस प्रसंग को धर्म और न्याय की रक्षा का अद्भुत प्रतीक माना।
इसके बाद भगवान श्रीराम, सीता जी और लक्ष्मण जी के दंडक वन में प्रवेश का अद्भुत मंचन हुआ।

सुतीक्षण मुनि ने भगवान का स्नेहपूर्वक स्वागत किया और उनसे धर्म, मर्यादा और जीवन के आदर्शों पर संवाद किया। इस प्रसंग ने श्रद्धालुओं को यह संदेश दिया कि संत-महात्माओं की संगति ही जीवन को पवित्र और सफल बनाती है।


इसके पश्चात भगवान श्रीराम का अगस्त्य मुनि के आश्रम में आगमन दिखाया गया। अगस्त्य मुनि ने प्रभु का अभिनंदन किया और उन्हें दिव्य शस्त्र प्रदान किए। यह दृश्य अत्यंत आकर्षक और रोमांचकारी रहा, क्योंकि यह वही शस्त्र थे जिनकी शक्ति से आगे चलकर भगवान श्रीराम राक्षसों का संहार कर धर्म की स्थापना करते हैं।

अगस्त्य मुनि के उपदेश ने दर्शकों को यह सीख दी कि “सत्य, संयम और धर्म ही मानव जीवन के सर्वोत्तम आयुध हैं।” श्रद्धालुओं की भावनाएँ और वातावरण पूरा मैदान भक्तिमय माहौल से सराबोर रहा। महिलाएँ, बच्चे और बुजुर्ग “ जय श्रीराम” के उद्घोष करते रहे। कलाकारों की सजीव अदाकारी और संवादों की गूंज ने ऐसा आभास कराया मानो त्रेतायुग के दृश्य प्रत्यक्ष उपस्थित हों।


समिति के अध्यक्ष रामगोपाल मिश्रा ने बताया कि इन लीलाओं का मुख्य संदेश है – जब अधर्म बढ़े तो धर्म की रक्षा हेतु प्रतिज्ञा आवश्यक है।संतों के मार्गदर्शन और आशीर्वाद से ही जीवन में विजय और सफलता संभव है। दिव्य शस्त्र केवल बाहरी नहीं, बल्कि सत्य और धर्म के आंतरिक शस्त्र भी हैं।


समिति के अध्यक्ष पं. रामगोपाल मिश्रा, हरीश शुक्ल, घनश्याम मिश्रा, प्रदीप बाजपेयी, विजय मिश्रा, नीरज शुक्ला, शिव नारायण दीक्षित, श्रेयांश बाजपेई, धीरेंद्र शुक्ल, आदित्य शुक्ला, शशिकांत गौतम, यश चौधरी, आकाश गंगवार, प्रतीक अरोड़ा आदि उपस्थित रहे।

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