Janmashtami आज: 16 कलाओं के अवतार हैं Sri Krishna, जाने व्रत-पूजन कैसे करें

कृष्ण पूर्णतया निर्विकारी हैं। तभी तो उनके अंगों के साथ भी लोग ‘कमल’ शब्द जोड़ते हैं, जैसे-कमलनयन, कमलमुख, करकमल आदि। उनका स्वरूप चैतन्य है। कृष्ण ने तो द्रोपदी का चीर बढ़ाकर उसे अपमानित होने से बचाया था। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का दिन बड़ा ही पवित्र है। जैनियों के भावी तीर्थकर और वैदिक परंपरा के नारायण श्रीकृष्ण के अवतरण का दिन है…

भगवान श्रीकृष्ण को सोलह कलाओं का अवतार माना जाता है। सच में कृष्ण ने समाज के छोटे से छोटे व्यक्ति का सम्मान बाइया, जो जिस भाव से सहायता की कामना लेकर कृष्ण के पास आया, उन्होंने उसी रूप में उसकी इच्छा पूरी की। अपने कार्यों से उन्होंने लोगों का इतना विश्वास जीत लिया कि आज भी लोग उन्हें ‘भगवान श्रीकृष्ण’ के रूप में ही मानते और पूजते हैं।
कृष्ण पूर्णतया निर्विकारी हैं। तभी तो उनके अंगों के साथ भी लोग ‘कमल’ शब्द जोड़ते हैं, जैसे-कमलनयन, कमलमुख, करकमल आदि। उनका स्वरूप चैतन्य है। कृष्ण ने तो द्रोपदी का चौर बढ़ाकर उसे अपमानित होने से बचाया था। श्रीकृष्ण जन्माष्मी का दिन बड़ा ही पवित्र है। जैनियों के भावी तीर्थकर और वैदिक परंपरा के नारायण श्रीकृष्ण के अवतरण का दिन है। कृष्ण ने सारी दुनिया कोकर्मयोग का पाठ पढ़ाया। उन्होंने प्राणीमात्र को यह संदेश दिया कि केवल कर्म करना आदमी का अधिकार है। फल की इच्छा रखना उसका अधिकार नहीं। इंसान सुख और दुख दोनों में भगवान का स्मरण करता है। श्रीकृष्ण का जीवन भी उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। उनके जीवन को हम तीन भागों में विभक्त करें तो वे जेल में पैदा हुए, माहाल में जिए और जंगाल से विदा हुए। जेल में पैदा होना बुरी बात नहीं है, जेल में जीना और मरना अपराध हुआ करता है। आदमी जन्म से नाहीं कर्म से महान बनता है। भगवान श्रीकृष्ण, मर्यादा पुरुषोत्तम राम और भगवान माहावीर आदि महापुरुषों ने हमें जीवन जीने की सीख दी है। राम, कृष्ण एवं महावीर का जीवन अलग-अलग मर्यादाओं और संदेशों पर आधारित है। राम ने जीवन भर मर्यादाएं नहीं तोड़ी, वे देव बनकर जिए। श्रीकृष्ण वाकपुटता में जीवन जीते रहे। मर्यादाओं से नीरस हुए जीवन को कृष्ण ने रस और आनंद से भर दिया, लेकिन महाबीर ने परम विश्राम और समाधि का सूत्र दिया। उन्होंने मौन साधना सिखाई। मित्रता सीखनी हो तो कृष्ण से सीखी वे सबको अपने समान चाहते थे। उनकी दृष्टि में अमीर-गरीब का कोई भेद नहीं था। अतः हमें भी कृष्ण की इसी सीखको अपने जीवन में अपनाना चाहिए।

व्रत-पूजन कैसे करें
उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रहाचर्य का पालन करें।
उपवास के दिन प्रात काल स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत हो जाएं।
तापश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और बादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर
इसके बाद जाल, फाल, कुश और गंध लेकर संकाय करें
ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये श्रीकृष्ण जन्माष्क्ष्मी व्रतमाह करिष्ये॥
अब मध्याह के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकोजी के लिए सुतिकागृह नियत करें।
तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
मूर्ति में बालक ओकूण को स्तनपान कराती हुई देवकी ही और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हो अथवा ऐसे भाव हो।

इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें
देव पूजन में देवकी, बालदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम ऊमशः निर्दिश करना चाहिए।
करें-फिर इस मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण
प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।
सुपुत्राध्यं प्रदत्तं में गृहाणेभनमोऽस्तुते। अंत में प्रसाद वितरण कर भजन-कीर्तन करते हुए रतजगा करें।
