जिंदगी एक पहेली : क्या वाकई में उमा आतंकवादी थी

तेरी-मेरी कहानी

जिंदगी एक पहेली : क्या वाकई में उमा आतंकवादी थी
उमा की दीन हालत और याचना को सुन कर प्राचार्य शीला का दिल पसीज गया. उन्होंने उमा को कालिज में दाखिला दे दिया. लेकिन खुफिया विभाग के अफसर द्वारा उमा के विरुद्ध तहकीकात किए जाने पर प्राचार्य हैरान हो गईं कि कहीं उमा आतंकवादी तो नहीं.
रजनी गोपालन |
कालिज का वार्षिकोत्सव था. छात्रों की गहमागहमी के बीच प्राचार्य शीला वर्मा व्यस्त थीं. तभी एक महिला अपने 8 साल के बच्चे के साथ वहां पहुंची और प्राचार्य का अभिवादन कर बोली, ‘‘मैम, मैं उमा हूं.’’ प्राचार्य शीला ने उसे गौर से देखा तो देखती रह गईं. उन्हें अपनी आंखों पर सहज भरोसा नहीं हो रहा था. उन की आंखों के सामने जो उमा खड़ी थी वह संपन्नता की प्रतिमूर्ति थी जबकि उन्होेंने जिस उमा को देखा था वह दीनहीन दुर्बल काया थी.
प्राचार्य को समझते देर न लगी कि संभ्रांत महिला के रूप में जो उमा खड़ी है वह कामयाबी के शिखर पर है. इसीलिए अपनी पूर्व छात्रा को मेहमानों की पंक्ति में बैठाते हुए वह बोलीं कि उमा, तुम कहीं जाना नहीं. इस कार्यक्रम के बाद मैं फुरसत में तुम से बात करूंगी. वार्षिकोत्सव के अवसर पर कालिज की छात्राओं द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू हो गया था. प्राचार्य शीला वर्मा अपनी कुरसी पर बैठी उमा के बारे में सोचने लगीं. 8 साल पहले की सारी घटनाएं उन की आंखों में चलचित्र की तरह घूमने लगीं.
प्राचार्य शीला सामने खड़ी युवती को चिंता भरी निगाहों से देख रही थीं. तकनीकी कालिज में दाखिला लेने आई उमा बदहवास सी खड़ी थी. बिखरे बाल, सूनी आंखें जैसे दया की याचना कर रही थीं. उमा शीला के निर्णय की प्रतीक्षा में खड़ी थी. ‘कालिज में सुबह 9 से शाम 4 बजे तक रहना होगा. छात्रों की उपस्थिति पर यहां काफी ध्यान रखा जाता है. महीने भर के बच्चे की देखभाल करते हुए पढ़ाई करना क्या संभव होगा?’ प्राचार्य ने शंका जाहिर की.
मैं किसी भी तरह समय के साथ तालमेल कर लूंगी. कृपया मुझे प्रवेश दें,’ उमा की आवाज कांप रही थी. ‘तुम अगले साल दाखिला ले सकती हो. तब तक बच्चा भी कुछ बड़ा हो जाएगा और तुम्हारी सेहत भी सुधर जाएगी.’
मैडम, मुझे यह प्रशिक्षण पूरा कर के नौकरी में लगना है. यदि मुझे दाखिला नहीं मिला तो मैं कहीं की नहीं रहूंगी.’ प्राचार्य शीला ने उमा की ओर गंभीरता से देखते हुए उसे जाने का संकेत किया. उमा के जाने के बाद कमरे में सन्नाटा छा गया. प्रवेश समिति के अन्य सदस्यों के साथ विचारविमर्श करने के बाद उमा को कालिज में प्रवेश देने का निर्णय लिया गया था.
उमा कालिज में सब से पहले पहुंच जाती थी. कक्षा में प्रश्नों का जवाब बड़ी फुर्ती से देती थी. साथ में पढ़ने वाली लड़कियों के साथ बहुत कम बोलती, क्योंकि वह हमेशा अपने में ही खोई रहती थी. कई बार तो छोटीछोटी बातों पर साथियों से उलझ जाती थी. प्राचार्य शीला वर्मा को उमा के कटु व्यवहार की खबर जबतब मिलती रहती थी. एक दिन दोपहर को शीला के कमरे में खुफिया पुलिस अफसर करियप्पन आ धमके. शहर के मशहूर महिला तकनीकी कालिज में पुलिस अफसर का आना लड़कियों व कालिज स्टाफ के बीच घबराहट पैदा करने वाला था. करियप्पन उमा से पूछताछ करना चाहते थे.
प्राचार्य ने उमा के सारे रेकार्ड पेश करवाए तो करियप्पन ने दबे स्वर में अपने आने का कारण जाहिर किया कि उमा का श्रीलंका के आतंकवादी संगठन से संपर्क होने की खबर कई बार थाने में आई है. खबर देने वाला हमेशा अपना नाम और पता फर्जी देता है. कई बार शिकायती पत्र आने के कारण खुफिया विभाग को खोजखबर लेने का आदेश दिया गया है.
शीला असमंजस में पड़ गईं. पुलिस केवल शक के आधार पर जांच के लिए आई है. उमा को अचानक पुलिस अफसर के सामने खड़ा करने पर न जाने वह कैसा व्यवहार करेगी. वैसे भी उस की दिमागी हालत ठीक नहीं है. यदि वह आवेग में चीखनेचिल्लाने लगी तो मामला चारों ओर फैल जाएगा और कालिज की बदनामी होगी. काफी सोचविचार के बाद वह बोली थीं, ‘आफिसर, मैं उमा से बातचीत कर के कुछ जानकारी लेती हूं. उस के बाद उमा से आप बातचीत करें. अचानक पुलिस जांच की बात सुन कर हो सकता है वह कुछ खतरनाक निर्णय ले बैठे. उमा काफी कमजोर है और तनावग्रस्त रहती है. आप 3-4 दिन का समय दीजिए.’
ठीक है, पर अब आप को उस की निगरानी भी करनी है, क्योंकि कालिज की सुरक्षा की जिम्मेदारी हम पुलिस वालों पर ही है,’ पुलिस अफसर करियप्पन ने उठते हुए कहा. अगले दिन प्राचार्य ने उमा को अपने कमरे में बुलवाया. कालिज की छुट्टी के बाद उमा उन के कमरे में आई. उमा को देखते ही उन्हें इंटरव्यू के दिन का दृश्य याद आया. उमा उस वक्त भी सामान्य नहीं लग रही थी. उस के चेहरे पर गहरी वेदना साफ झलक रही थी, पर उस के आतंकवादी होने की बात सचमुच दिल को दहलाने वाली थी. क्या सचमुच उमा किसी षड्यंत्र में उलझी हुई है? क्या वह किसी आतंकवादी घटना को अंजाम देने के लिए ही यहां छात्रा बन कर आई है? इस नाजुक मामले को सावधानी से सुलझाना होगा.
मैडम, आप ने मुझे मिलने को कहा था?’ उमा परेशान सी खड़ी थी. ‘आप कहां रहती हैं? आप के परिवार में कौनकौन हैं?’ प्राचार्य ने पूछा.
जी, मैं इस समय एक महिला होस्टल में रहती हूं,’ उमा के होंठ कांप रहे थे. ‘उमा, तुम ने कालिज में प्रवेश के समय अपने फार्म पर रेडहिल्स एरिया में रहने की बात दर्ज की है. अब तुम तामवरम स्थित होस्टल में रहने की बात कह रही हो. पता बदलने की सूचना कालिज को क्यों नहीं दी?’ प्राचार्य का चेहरा तमतमाने लगा.
जी मैम, सबकुछ काफी जल्दी में करना पड़ा. इस कारण होस्टल का पता स्कूल कार्यालय को बता नहीं पाई. मैं कल नया पता आफिस में दे दूंगी,’ उमा ने कहा. ‘आप अपना घर छोड़ कर होस्टल में क्यों रहने लगी हैं? आप के छोटे बच्चे की देखभाल कौन करता है?’ प्राचार्य ने पूछा.
जी मैम…यह सब मेरा निजी मामला है. मैं इस बारे में बात नहीं करना चाहती,’ उमा ने दृढ़ स्वर में कहा. ‘देखो उमा, तुम को ढूंढ़ते हुए खुफिया पुलिस के अफसर कालिज आए थे. पुलिस थाने में कई दिनों से कोई फोन कर कह रहा था कि तुम श्रीलंका के आतंकवादी संगठन से जुड़ी हुई हो. मैं ने पुलिस अफसर से कुछ समय मांग लिया है ताकि तुम से खुद पहले बात कर सकूं. तुम इस मामले में मेरा सहयोग करोगी तो तुम्हारे लिए अच्छा होगा,’ प्राचार्य कड़ी आवाज में बोलीं.
क्या मैं आतंकवादी हूं?’ उमा तमतमा कर बोली, ‘सारा आतंक मुझ पर करने के बाद अब वे लोग यह नया नाटक खेल रहे हैं…नीच कहीं के…आने दो पुलिस को…उन की सारी करतूत खोल कर रख दूंगी.’ ‘उमा…चिल्लाना बंद करो,’ प्राचार्य संयत स्वर में बोलीं, ‘पुलिस से निबटना इतना आसान नहीं है. आतंकवादियों से संबंध होने के शक में तुम्हें कैद करना बहुत आसान है. फिर बरसों कोर्टकचहरी में फंसना होगा. तुम्हारे जीवन के मूल्यवान दिन यों ही बरबाद हो जाएंगे. अपनी समस्या को बिना दुरावछिपाव के बताने पर मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं,’ कहते हुए उन्होंने उमा को कुरसी पर बैठने का इशारा किया.
उमा सिर झुकाए कुरसी पर कुछ क्षण मौन बैठी रही. फिर अपनी कहानी बताते हुए बोली कि मेरे पिता सदाशिवन का कोयंबटूर में कपड़े का काम था. मेरी 2 छोटी बहनें भी थीं. मां सरकारी स्कूल में अध्यापिका थीं. बचपन में मुझे कभी किसी चीज की कमी नहीं महसूस हुई.
मेरे पिताजी खानेपीने के बडे़ शौकीन थे. बच्चों को भी बढि़या पकवान खिलाते थे और सैरसपाटे के लिए अपने साथ ले जाते थे. मैं 8वीं कक्षा में पढ़ रही थी, तब मुझे मातापिता के बीच के तनाव का कुछ एहसास हुआ. पता चला कि मेरे पिता शराब पीते हैं. वह रात को देर से घर आते और फिर कमरे में मां से लड़ते रहते थे. मां का कड़ा अनुशासन मुझे अच्छा नहीं लगता था. मैं अपने पिता की ही बात मानती थी और उन के प्रति ही श्रद्धा रखती थी. मैं पढ़ने में काफी तेज थी और उस साल बी.एससी. की परीक्षा दी थी.
मैं ने जिस साल बी.एससी. की परीक्षा दी थी उसी साल अगस्त में एक दिन पिताजी अपने मित्र गोपीनाथ को घर ले कर आए और मुझे बुला कर गोपीनाथ को प्रणाम करने को कहा. पिताजी ने मेरे सामने ही मेरी पढ़ाई, संगीत और खाना बनाने की गोपीनाथ से काफी तारीफ की और बोले कि जितनी जल्दी हो शादी की तैयारी कर देंगे. गोपीनाथ के जाने के बाद मेरे मातापिता में मेरे विवाह को ले कर झड़प शुरू हो गई. मां कह रही थीं कि गोपीनाथ का बेटा रमेश उमा के लायक नहीं है. उस ने पढ़ाई भी ठीक तरह से नहीं की है और कोई ढंग का कामधंधा भी नहीं करता है.
पिताजी चिल्लाने लगे कि आज के समय में इस से ज्यादा अच्छा रिश्ता भला हमें और कहां मिलेगा? सबकुछ जानने के बाद भी तुम तकरार क्यों कर रही हो? पिता के प्रति पूरी श्रद्धा होने के कारण रमेश को देखे बिना ही मैं ने शादी के लिए अपनी सहमति दे दी थी. मां का विरोध टिक नहीं सका. रमेश के साथ मेरी शादी हो गई और हम हनीमून के लिए ऊटी गए थे. ऊटी का मौसम सुहावना था. वहां रंगबिरंगे फूलों से भरा अति विशाल बगीचा, गहरे ठंडे पानी से भरी झील में नौका विहार की सुविधा, चटपटी खाने की चीजों आदि के बीच हम कहीं खो से गए थे.
रात को कमरे में शराब की बोतल खोल कर रमेश जो बैठा तो सारी रात पीता ही रहा. दिन भर जिस रमेश के साथ जिंदगी को बेहद हसीन मान बैठी थी, वह रात में वहशी दरिंदा बन गया था. सुबह होने तक शरीर और मन दोनों बुरी तरह आहत हो चुके थे. होटल का बिल भरने के लिए भी रमेश के पास पैसा नहीं था तो मैं ने विदाई के समय मां के दिए हुए रुपयों से होटल का बिल भरा था.
ससुराल आते ही अपनी सास से पति की शिकायत करने लगी तो उन का तेवर बदल गया और झिड़की लगाते हुए बोलीं कि क्या तुम्हारे पिता शराब नहीं पीते हैं? तुम्हारी मां कैसे चुपचाप गृहस्थी चला रही हैं? जाओ, अपना काम करो. मेरे हाथ की मेहंदी भी नहीं छूटी थी कि घर की नौकरानी की छुट्टी कर दी गई. रसोई का पूरा काम और इसी के साथ सफाई, बर्तन मलना, कपड़ा धोना, बगीचे की देखरेख करना सबकुछ मेरे पल्ले आ पड़ा. बाद में मुझे पता चला कि मेरा पति रमेश न पिता के व्यापार में हाथ बंटाता है और न ही कहीं नौकरी करता है. दिन भर बिगड़े दोस्तों के साथ ताश खेलना, शराब पीना, फालतू आवारागर्दी करना ही उस का काम था.
इस नारकीय जीवन में मैं शादी के दूसरे ही महीने गर्भवती हो गई. शरीर की कमजोरी बढ़ गई तो मायके जाने की इच्छा जाहिर की. बहुत मुश्किल से 4 दिन मायके में रहने की अनुमति मिली. मायके पहुंचते ही मैं मां पर बिफर पड़ी. मां चुपचाप सबकुछ सुनती रहीं. अंत में उन्होंने वह सच बताया जिस से मैं पूरी तरह अनजान थी. मां ने बताया कि तुम्हारे पिता ने व्यापार में घाटा होने पर रमेश के पिता से 20 लाख का कर्ज लिया था जिसे वह दे नहीं पा रहे थे. जब स्थिति बिगड़ आई तब रमेश के पिता ने अपने आवारा लड़के की शादी तुम्हारे साथ करने की शर्त रखी. यदि शादी नहीं करते तो तुम्हारे पिता को जेल जाना पड़ता. वास्तव में एक तरह से तुम्हारे पिता ने उस राक्षस के हाथ तुम्हें बेच दिया.
कर्ज लेने के कागजात शादी के बाद वापस करने का वादा रमेश के पिता ने किया था, पर आज तक उन्हें वापस नहीं किया है. बताओ, मैं क्या कर सकती हूं? 2 लड़कियां और घर में बैठी हैं. उन का भविष्य भी तो मुझे देखना है. बेटी, तुम घर की इज्जत बचाए रखना.
मां, मैं अब न तो ससुराल जाऊंगी और न ही वह सब जुल्म सहूंगी,’ मेरे विश्वास को देख कर मां बोलीं कि बेटी तुम गर्भवती हो. अपने बच्चे के बारे में भी तो तुम्हें सोचना होगा. तुम्हारे पिताजी रमेश से किसी बुरी लत में कम नहीं हैं पर मैं केवल तुम बच्चों के कारण ही तो उन के साथ गृहस्थी चला रही हूं.’ मैं हारे हुए सिपाही की तरह ससुराल लौट गई थी. यातना भरे दिन, खूंखार रातें किसी तरह बीत रही थीं. नीरज का जन्म हुआ. उस के बाद पति से लड़झगड़ कर ही मैं टे्रनिंग कालिज में दाखिला ले पाई थी. मुझे घर के कामों से आजाद हो कर कालिज जाते देख मेरी सास चिढ़ गईं. छोटे बच्चे की देखभाल करना, अपने आवारा लड़के को असमय खिलाना- पिलाना सास को भारी पड़ रहा था.
मुझे कालिज से छुड़वा कर घर में बैठाने के लिए सास ने जादूटोने का सहारा लिया. घर में तांत्रिक आनेजाने लगे. एक दिन मेरे खाने में कुछ जड़ीबूटी मिला कर दिया गया तो मैं आधी बेहोशी की हालत में पहुंच गई, फिर मुझे घसीट कर उस तांत्रिक के सामने बैठाया गया और भूत उतारने के लिए मुझे मारापीटा गया. तब मैं रोती हुई, दर्द से चीखती हुई निढाल हो गई थी. होश आने पर मुझे अपनी असहाय स्थिति का ज्ञान हुआ. मायके मैं जा नहीं सकती थी. अपनी टे्रनिंग मुझे हर कीमत पर पूरी करनी है. काफी सोचविचार कर मैं गिल्ड आफ सर्विस के कार्यालय में गई तो सोशल वेलफेयर बोर्ड के होस्टल में बहुत मुश्किल से जगह मिली. अपने शरीर पर पड़े गहनों को बेच कर ही होस्टल में बच्चे के साथ रह कर अपनी पढ़ाई कर रही हूं. होस्टल की वार्डन रमेश को मुझ से मिलने नहीं देती हैं.
मैडम, मेरे पति ने मुझे फोन पर कई बार धमकी दी है कि मैं वापस घर चली आऊं. यदि मैं वापस नहीं आई तो वह मुझे बरबाद कर के ही छोड़ेंगे. यह उन्हीं की चाल होगी. आतंकवादी बता कर वह मुझे जेल भेजना चाहते हैं. मेरे बच्चे को मुझ से अलग करना चाहते हैं. प्लीज मैम, मेरी मदद कीजिए. प्राचार्य ने उमा को शांत करा कर भेज दिया. खुफिया पुलिस अधिकारी से बातचीत की. हफ्ते भर की जांच के बाद पुलिस ने उमा को निर्दोष पाया. उमा ने अपनी टे्रनिंग पूरी कर ली.
पुरस्कार वितरण की घोषणा के साथ प्राचार्य शीला वर्मा ने आंखें खोलीं तो सामने की कतार में उमा अपने बच्चे के साथ बैठी थी. उन्होंने उमा को मंच पर बुला कर उसे सम्मानित करने के बाद धीरे से कहा, ‘तुम जाना नहीं. तुम से बातें करनी हैं.’ प्राचार्य के ड्राइंगरूम में बैठी उमा अपने बारे में बता रही थी.
मैडम, यहां से टे्रनिंग करने के बाद मुझे दुबई के एक स्कूल में पढ़ाने का आफर मिला तो मैं अपने बच्चे को ले कर वहां चली गई. उस के बाद पढ़ाने की नौकरी छोड़ कर मैं एक कंपनी में लग गई और अब एक ऊंचे ओहदे पर हूं. कुछ समय के बाद पति को भी दुबई बुला लिया और उन का उपचार करा कर नशे की लत छुड़वा दी. वह भी अब काम कर रहे हैं. मैं आप से मिल कर आशीर्वाद लेने आई हूं. यदि आप मेरी मदद नहीं करतीं तो शायद मैं पुलिस के चंगुल में फंस कर जेल चली गई होती. मैं आप का एहसान कभी नहीं भूल सकती,’’ उमा गद्गद हो कर कह रही थी फिर उस ने बैग से एक उपहार निकाल कर प्राचार्य को दिया.
उमा, जीवन की जंग को जीतना आसान नहीं है. जीवन एक अनबूझ पहेली है. हम आत्मविश्वास के बल पर ही सफलता पा सकते हैं और यह हौसला अपने में बनाए रखना.’’

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