संजीव गंभीर ने नई पहचान डिजिटल मीडिया से बनाई

India International Uttar Pradesh Uttarakhand टेक-नेट तेरी-मेरी कहानी युवा-राजनीति वीडियो

निर्भय सक्सैना, बरेली। शहर बरेली के आजकल की डिजिटल पत्रकारिता जगत में संजीव कुमार शर्मा “गंभीर” किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। बरेली कॉलेज बरेली के अंदर एक बेहतरीन और सर्वश्रेष्ठ छात्र का खिताब हासिल करके स्वर्ण पदक अर्जित करने वाले संजीव गंभीर ने छात्र जीवन के दौरान अपने उल्लेखनीय सेवा कार्यों के दम पर कई बार पदक और स्कॉलरशिप हासिल करके संकेत दे दिया था कि उनके अंदर सामाजिक सरोकार और समाज के पीड़ित परेशान असहाय लोगों के प्रति संवेदना कूट-कूट कर भरी है। वही आजकल उनकी पत्रकारिता में भी झलकती है। केवल कलम से ही नहीं बल्कि जुबान से भी प्रखर दिखने वाले संजीव गंभीर ने यूट्यूब चैनल, वेब पोर्टल, ई पेपर और सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफार्म का अपनी पत्रकारिता के लिए भरपूर इस्तेमाल किया और शहर के अंदर अपनी अलग ही पहचान बनाई। शायद यही वजह है कि अब लोगों को शाम होते ही उनके द्वारा निकलने वाला “गंभीर न्यूज़” का इंतजार रहने लगा है।

संजीव कुमार शर्मा गंभीर खुद बताते हैं कि किन्हीं तकनीकी कारणों की वजह से अगर सांध्य कालीन संस्करण निकालने में दिक्कत होती है तो पाठकों के फोन आने लगते हैं। उनके इस कथन से साफ जाहिर है कि अब शहरवासियों का जहन भी वक्त के साथ बदल रहा है। सूचना क्रांति के इस दौर में अब लोग देश विदेश की ही नहीं बल्कि अपने शहर की खबरें भी शाम होने तक जानना चाहते हैं।मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे संजीव गंभीर बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। एम ए समाजशास्त्र में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण संजीव गंभीर ने कानून की भी पढ़ाई की है और दर्शन शास्त्र का भी अध्ययन किया है। बरेली कॉलेज बरेली में फोटोग्राफी का कोर्स भी कर चुके हैं शायद यही वजह है की बड़े मीडिया संस्थान में नौकरी के दौरान कलम के साथ उनके कमर में कैमरा भी जरूर रहता था।

Sanjeev Gambhir is still battling with the financial crisis and trying to make ends meet through electronic and digital media platforms to somehow fulfill his passion for journalism. Truly the life of Sanjeev Gambhir is a living example of struggle. He is a fighting man. Who never let the journalist hidden inside him die. Starting from zero in digital media, Sanjeev Gambhir, who has achieved a place in his beat in big media organizations, has created a different and new identity inside the city of Bareilly, which is commendable.

विधि स्नातक संजीव गंभीर ने दो दशक पहले शहर के एक बड़े नामचीन मीडिया संस्थान से पत्रकारिता की शुरुआत की।बाद में दो अन्य बड़े पत्रकारिता संस्थानों में लंबे समय तक सिटी टीम में मेडिकल एजुकेशन समेत कई प्रमुख वीटों में अपनी कलम का जादू दिखाया उनकी ब्रेक की गई कुछ समाचारों पर सरकारी कर्मियों पर कार्यवाही भी हुई थी। दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिंदुस्तान, कैनविज टाइम्स जैसे बरेली से प्रकाशित अखबारों में करीब दो दशक सक्रिय पत्रकारिता भी की। यू पी जर्नलिस्ट एसोसिएशन उपजा बरेली में भी सक्रिय रहे।

यू पी जर्नलिस्ट एसोसिएशन, लखनऊ में भी प्रदेश उपाध्यक्ष दो टर्म रहे। करीब 54 साल के हो चुके संजीव गंभीर ने आज तक न तो फोटोग्राफी छोड़ी है और न धारदार लिखना और बोलना बंद किया है। स्वामी विवेकानंद पर उनका चिंतन और व्याख्यान वास्तव में सराहनीय और झकझोर देने वाला बताया जाता है। संजीव कुमार शर्मा गंभीर 23 अप्रैल 2006 को वैवाहिक परिणय सूत्र के बंधन में बंधे थे। संजीव गंभीर एक पत्रकार ही नहीं बल्कि समाजसेवी भी हैं हैं।

बरेली कॉलेज बरेली में राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवक रहते उन्होंने आंध्र प्रदेश के अनंतपुर विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय एकता शिविर में राष्ट्रीय स्तर पर वेस्टफील्ड वर्कर एवं लीडर का अवार्ड हासिल किया। फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय एकता शिविर और बाद में पटियाला विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय एकता शिविर में भी विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया था और कई अवार्ड भी प्राप्त किए थे। बाद में विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डॉ यूनतन बचन सिंह, फिर डॉक्टर मुरलीधर तिवारी के हाथों भी सम्मानित हुए।

बरेली कॉलेज बरेली के तत्कालीन प्रिंसिपल डॉक्टर पी पी सिंह और डॉक्टर आर पी सिंह के हाथों भी कई बार उल्लेखनीय सेवाओं के लिए संजीव गंभीर को सम्मानित किया गया था। बाद में श्री गंभीर विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी की बरेली शाखा से जुड़े और एक अवसर ऐसा आया कि उन्होंने जीवनवृति कार्यकर्ता बनने का ही फैसला ले लिया और कन्याकुमारी स्थित विवेकानंद केंद्र के हेड क्वार्टर चले भी गए थे। संजीव गंभीर कहते हैं कि उन्होंने विवेकानंद केंद्र अनुसंधान संस्थान बैंगलोर में भी अंतरराष्ट्रीय योग शिक्षा शिविर की व्यवस्था संभालने में मदद की थी जिसमें 22 देशों से लोग आए हुए थे। दक्षिण के कई प्रदेशों में भ्रमण भी किया लेकिन पारिवारिक कारणों से बरेली लौटना पड़ा और उनका प्रशिक्षण छूट गया। अन्यथा उनका सपना प्रदेश के विवेकानंद केंद्र द्वारा संचालित आवासीय विद्यालय में शिक्षक बनकर देश की सेवा करना था जहां आदिवासी वनवासी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को लोग धर्मांतरण करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाने का काम कर रहे थे। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और संघ की शाखाओं में भी काफी सक्रिय रहे। उस समय विक्रम नगर की अपनी भागीरथी शाखा के कार्यवाह भी रहे और सरस्वती शिशु मंदिर विक्रम नगर में कुछ समय आचार्य बनने का भी सौभाग्य हासिल किया। कालांतर में स्वास्थ्य विभाग और बरेली कॉलेज बरेली में दो सरकारी नौकरियां भी की लेकिन मन नहीं रमा तो बाद में पत्रकारिता को ही जीविकोपार्जन का साधन बनाया।

पत्नी श्रीमती प्रगति झा ने न केवल उनकी जिंदगी बल्कि उनकी पत्रकारिता में भी पूर्ण सहयोग किया। संजीव गंभीर बताते हैं कि 2006 में वह वैवाहिक बंधन में बंधे थे । छात्र जीवन में संजीव गंभीर ने संकल्प लिया था कि यदि वह शादी करेंगे भी तो फिर दहेज रहित और सादा विवाह करेंगे जो उन्होंने लखनऊ पहुंचकर किया भी। तब से लेकर आज तक उनके प्रत्येक सकारात्मक कार्य में उनकी पत्नी प्रगति का अहम रोल रहा है। शादी के बाद बरेली आकर पत्नी ने पहले एल एल बी परीक्षा पास की फिर राजनीति शास्त्र में एम ए पास किया। साथ ही साथ बेटे अंश झा और अनन्या झा का भी बखूबी पालन पोषण कर रही हैं।

संजीव गंभीर बताते हैं कि पिछले साल 2021 में उन्हें कोरोना वायरस का संक्रमण हो गया था और शादी की वर्षगांठ वाले दिन ही रोहिलखंड मेडिकल कॉलेज, बरेली के कोरोना वार्ड में भर्ती हुए थे। अस्पताल में उनकी आंखों के सामने रोजाना तमाम लोग अंतिम सांस लेते थे। शायद बुजुर्गों की दुआएं और शहर वासियों का प्यार और आशीर्वाद काम आया कि वह इलाज बीच में ही छोड़ कर घर चले आए थे तब उनकी पत्नी प्रगति ने हीं ऑक्सीजन डॉक्टर और दवाइयों का बंदोबस्त कर के घर में ही आईसीयू बनवा दिया था। इस कार्य में उनके बचपन के मित्र राजेंद्र गुप्ता, व्यापारी नेता ने काफी मदद की थी और उन्होंने अपनी ऑक्सीजन फैक्ट्री से एक या दो नहीं नहीं करीब 10 ऑक्सीजन के सिलेंडर उनके घर मुफ्त भिजवाए थे जिससे उनकी और उनकी पत्नी की जान बच सकी । उन दिनों दोनों ही पति-पत्नी को कोरोना हो चुका था। समय मिलते ही आज भी संजीव गंभीर की पत्नी प्रगति गंभीर न्यूज़ का स्टूडियो संभालती हैं । कभी-कभी पर्दे पर तो ज्यादातर पर्दे की आड़ में गंभीर न्यूज़ की कामयाबी में अपना अमूल्य सहयोग दे रही हैं। संजीव गंभीर का बेटा अंश झा सीबीएसई बोर्ड से दसवीं बोर्ड परीक्षा देने जा रहा है वहीं बेटी अनन्या सातवीं की परीक्षा देगी। गंभीर बताते हैं उनके दोनों ही बच्चे काफी होनहार हैं और उनमें कुछ नया करने की ललक भी दिखाई देती है। प्रार्थना है की वह अपने उद्देश में सफल हों और दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करें।

किसी ने सोचा होगा की सेल्फी स्टिक भी पत्रकारिता का एक साधन बन सकती है

निर्भय सक्सैना, बरेली। शायद ही किसी ने सोचा होगा की सेल्फी स्टिक भी पत्रकारिता का एक साधन बन सकती है। संजीव कुमार शर्मा गंभीर खुद बताते हैं कि जब कैनविज टाइम्स अखबार बंद हुआ था, तो मजबूरन वह अपने एक पूर्वर्ती मीडिया संस्थान में नौकरी की उम्मीद से गए थे और अपने एक प्रिय साथी से मिले थे, उनसे मिलकर पत्रकारिता की पेशकश की थी लेकिन निराशाजनक उत्तर मिला, जिससे मन खिन्न हो गया और तभी से तय किया कि वह नए तरीके की पत्रकारिता शुरू करेंगे जिसमें अकेले ही जितना कुछ कर पाएंगे करेंगे। किसी के भरोसे और सहयोग की नौबत न आए तभी अच्छा रहेगा।निराश होकर बटलर प्लाजा इलेक्ट्रॉनिक मार्केट आए और ₹120 में सेल्फी स्टिक खरीदी।

सेल्फी मोड के अंदर अपना मोबाइल खरीदी गई सेल्फी स्टिक में लगाया और बटन दबाते ही मोबाइल ने काम करना शुरू कर दिया। बस क्या था आरंभ हो गई ग्राउंड जीरो से रिपोर्टिंग की शुरुआत। संजीव गंभीर बताते हैं कि जब सेल्फी स्टिक लेकर वह शहर के हालात गली कूचे और नालियों की समस्या दिखाते थे तो तमाम मीडिया संस्थान से जुड़े उनके ही साथी उपहास करते थे लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और दृढ़ निश्चय के साथ अपने काम में लगे रहे।

बाद में सामाजिक सरोकार की खबरें मौके से ही बोलते बोलते इतना अभ्यास हो गया कि खुद ही कैमरामैन, खुद ही रिपोर्टर और खुद ही वीडियो एडिटर भी बनते चले गए। अपना स्टूडियो भी घर पर ही बना लिया। जब इस फील्ड में भी भीड़ नजर आने लगी तो गंभीर न्यूज़ का ही सांध्यकालीन ई संस्करण भी निकालना शुरू कर दिया जो काफी लोकप्रिय हो चुका है। सामाजिक सरोकार की स्थानीय खबरें इस संस्करण में भरपूर मात्रा में लोगों को पढ़ने के लिए मिल रही हैं।

Sanjeev Gambhir is still battling with the financial crisis and trying to make ends meet through electronic and digital media platforms to somehow fulfill his passion for journalism. Truly the life of Sanjeev Gambhir is a living example of struggle. He is a fighting man. Who never let the journalist hidden inside him die. Starting from zero in digital media, Sanjeev Gambhir, who has achieved a place in his beat in big media organizations, has created a different and new identity inside the city of Bareilly, which is commendable.

हालांकि, संजीव गंभीर अभी भी आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं और किसी तरीके से पत्रकारिता का अपना शौक पूरा करने की खातिर इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए दम भरने का प्रयास कर रहे हैं। सचमुच संजीव गंभीर का जीवन संघर्ष की जीती जागती मिसाल है। वो संघर्षशील व्यक्ति हैं। जिन्होंने अपने भीतर छिपा हुआ पत्रकार कभी मरने नहीं दिया। बड़े-बड़े मीडिया संस्थानों में अपनी बीट में मुकाम हासिल कर चुके संजीव गंभीर ने डिजिटल मीडिया में जीरो से शुरुआत करके बरेली शहर के अंदर अपनी अलग और नई पहचान बनाई है जो काबिले तारीफ है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *