Prayag Maha Kumbh: अमृत स्नान को सोशल मीडिया की नजर से देखिए और जानिए कुंभ की परंपरा
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Prayag Maha Kumbh: अमृत स्नान को देखिए सोशल मीडिया की नजर से जानिए कुंभ की परंपरा और प्राचीनता क्योंकि इस मौके पर दुनिया भर से आए विदेशी श्रद्धालु भी क्या कहते हैं भारतीय संस्कृति और भारत के बारे में इसलिए इस खबर को शुरू से अंत तक पर यह भी और देखी भी और हमें बताइए भी की यह आपको कैसी लगी… फिलहाल पहले अमृत स्नान में अब तक एक करोड़ से अधिक लोग स्नान कर चुके हैं और डेढ़ साल तक 4 करोड लोगों के आस्था की डुबकी लगाने का अनुमान है
विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और धार्मिक मेला है प्रयागराज में होने वाला महाकुंभ। हजारों साल से अनवरत चले आ रहे इस उत्सव का आधार पुराणों में वर्णित समुद्र मंथन से जुड़ा है, जिसमें 12 दिनों तक चले देवताओं और असुरों के भीषण संग्राम के बाद अमृत से भरा स्वर्ण कलश निकला था, जिसकी बूंदें चार पवित्र नदियों के किनारे बसे स्थानों पर गिरी थीं प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उत्जैन।
प्रयागराज में हर 12 वर्ष बाद (देवताओं के 12 दिन मनुष्यों के 12 वर्ष के बराबर) महाकुंभ मेला लगता है, जिसमें देश-विदेश से भारी संख्या में साधु-संत, तीर्थयात्री, खानार्थी, कल्पवासी आते हैं।
शाही खान के दौरान साधु-संतों, साध्वियों, नागाओं, किरों के हाथी, घोड़े और सोने-चांदी के रथों पर अखाड़ों का पारंपरिक जुलुस, चमकती तलवारें और नागा साधुओं की रस्में तथा अन्य सांस्कृतिक गतिविधियां तीर्थयात्रियों को लुभाती हैं। पवित्र गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम में करोड़ों लोग नित्य खान करते हैं।
बड़े त्योहारों-पौष पूर्णिमा, मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या, वसंत पंचमी, माघी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि पर खान के लिए भारी भीड़ होती है। विभिन्न भाषाभाषी, रीति-रिवाज, खान-पान, पहनावा, रंग-रूप, साज-सज्जा के लोगों का इतना बड़ा जमावड़ा विश्व में कहीं देखने को नहीं मिलता।
यह महान पर्व अनेकता में एकता की शक्ति परिलक्षित करता है पुरानी के साथ-साथ नई पीढ़ी के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है। इतनी बड़ी संख्या में आने वालों के लिए आवास, भोजन, परिवहन, खान, स्वास्थ्य और सुरक्षा की व्यवस्था में राज्य सरकार को अपने बजट में भारी रकम आवंटन करना पड़ता है।
प्रदेश सरकार ने इस वर्ष के बजट में 2500 करोड़ रुपये से अधिक का आवंटन किया है जिसका इस्तेमाल मेले की व्यवस्था के अलावा आधारभूत संरचनाओं के विकास, सड़कों, पुलों के निर्माण, यातायात, सफाई और स्वास्थ्य सुविधाओं पर होगा, जिनका दूरगामी लाभ होगा।
मेले में अखाड़ों और अन्य संस्थाओं द्वारा मुफ्त भोजन के लिए भंडारे चलाये जाते हैं। आवास के लिए तंबू शहर का निर्माण होता है। उत्तर प्रदेश स्टेट टूरिज्म द्वारा महाकुंभ पैकेज, जिसमें वाकिंग टूर, प्राणायाम और ध्यान सत्र आदि सम्मिलित होते हैं, का आयोजन किया जाता है।
इस बार कुंभ में एक डिजिटल कुंभ संग्रहालय भी बनाया जा रहा है, जिसमें मेले के धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं को दिखाया जाएगा। यह नवीनतम तकनीक पर आधारित होगा।
संग्रहालय में समुद्र मंथन गैलरी, अखाड़ा गैलरी, कुंभ मेला व्याख्या गैलरी, प्रकाश ध्वनि शो और ऋषियों और महात्माओं का जीवन दर्शाया जाएगा।
प्रयागराज अध्यात्म और विज्ञान का भी संगम होगा। हस्तकला को प्रोत्साहित करने के लिए स्मृति चिह्न हस्तशिल्प एवं करषा उत्पाद तथा धार्मिक वस्तुएं उपलब्ध कराने की भी व्यवस्था होगी।
प्रयागराज और उसके आसपास की समृद्ध विरासत मंदिरों और आश्रमों का बड़े पैमाने पर विकास और सौंदर्याकरण किया गया है।
सांस्कृतिक जीवन तथा और आध्यात्मिक ज्ञान के रूप में इनको प्रदर्शित करने की प्रदेश सरकार की वृहत योजना के अंतर्गत मंदिरों के द्वार, चारदिवारी, गलियारा निर्माण, पर्यटक क्षेत्रों के विकार, प्रकाश, पानी, शौचालय आदि की सुविधाओं की व्यवस्था भी की जाएंगी।
नवनिर्माण और सौंदयीकरण तीर्थयात्रियों की संख्या में वृद्धि करेगा, इसका लाभ दूरगामी होगा। बड़े पैमाने पर मनाए जाने वाले तीज-त्यौहार और मेले नये रोजगार उल्फा करते हैं। महाकुंभ में तो करोड़ों लोग इकट्ठा होंगे। मेला शुरू होने से पहले और बाद में भी लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा।
पिछले अर्धकुंभ, जो 2019 में लगा था. में छ लाख से अधिक लोगों को सीधे रोजगार मिला था, जो निर्माण कार्य आतिथ्य यातायात, स्वास्थ्य, सुरक्षा, व्यापार और मेला प्रबंधन में लगे थे।
स्थानीय व्यापारियों, होटलों, टूर ऑपरेटर्स, गाइड्स, टेंट लगाने, मंच बनाने और साज-सजा करने वालों रेस्टोरेंट और बाबा मालिकों और कर्मचारियों, फल-सब्जी, माला-फूल और पूजा के सामान बेचने वालों, मिठाइयां और नमकीन बनाने और बेचने वालों, पानी और पेय पदार्थों के सप्लायर, हस्तशिल्प के कारीगरों, छोटे-बड़े विक्रेताओं, नाथ के मालिकों और नाविकों और पंडों पुजारियों सबके लिए यह लाभ का बड़ा अवसर होता है।
आम दिन को अपेक्षा सभी कामों में अधिक लोगों की आवश्यकता होती है, जो बड़े पैमाने पर रोजगार का साधन बनती है। बहुतों के लिए तो मेले की कमाई से महीनों का घर खर्च निकलता है।
प्रयागराज शहर में व्यापारियों के लिए यह सुनहरा अवसर होता है, सभी उपभोक्ता वस्तुओं को बिक्री बढ़ती है, जो शहर की अर्थव्यवस्था को बल देती है। इंसपोर्टरों के लिए तो मेला धन वर्षा का समय होता है।
यातायात के सभी साधनों, रेल, हवाई जहाज, बस और किराए पर चलने वाली गाड़ियां, टोटो आदि का व्यवसाय चरम पर होता है। देश-विदेश से लोग मेले में आते हैं। यातायात साधनों की मांग बढ़ती है।
महीना पहले से बुकिंग शुरू हो जाती है। इन साधनों के ऑपरेटर्स चाहे वे सरकारी हों या निजी, सबको लाभ होता है। मेले से पहले तैयारी शुरू होती हैं, नये व्हीकल्स खरीदे जाते हैं, क्षमता में वृद्धि की जाती है।
ड्राइवर्स, टूर ऑपरेटर्स सब की मांग बढ़ती है। भारतीय रेल देश के कोने-कोने से मेले के लिए विशेष गाड़ियों का प्रबंध करती है, हवाई यात्रा की सुविधा भी बढ़ाई जाती है।
यात्रियों के अलावा माल ढोने वाले साधनः एक टेंपो आदि के ऑपरेटर्स के व्यापार में भारी वृद्धि होती है। मेले के प्रशासन पर भारी खर्च आता है, किंतु इससे जो रेवेन्यू होता है, वह खर्च से कहीं अधिक होता है।
2019 के अर्धकुंभ से सरकार को 1.2 लाख करोड़ रपये का रेवेन्यू प्राप्त हुआ था, 12000 करोड़ टैक्सों से आया था। मेला इस तरह सरकार के लिए आय का भी एक स्रोत है।
अंग्रेजी हुकूमत में भी सरकार इसका लाभ उठाती थी। 1882 में हुए कुंभ कुंभ से से जुड़े दस्तावेज में मेले ने के आयोजन पर 20,228 के खर्च और 29,162 के रेवेन्यू का विवरण मिलता है। मेले में बड़ी संख्या में लोग पहले भी आते थे और उसके लिए किसी विज्ञापन की आवश्यकता नहीं होती थी।
1942 को एक रोचक घटना है, भारत के वायसराय लॉर्ड जनरल लिनिथगो पं. मदन मोहन मालवीय के साथ कुंभ मेले का अवलोकन करने पहुंचे थे, जहां लाखों लोगों को अलग-अलग वेशभूषा में त्रिवेणी संगम में स्नान और भजन-पूजन करते देखा।
उनके लिए यह अकल्पनीय और चकित करने वाला दुर्लभ अवसर था, उन्होंने मालवीय जी से पूछा कि मेले के प्रचार पर कितना खर्च होता है, मालवीय जी ने हंसते हुए कहा मात्र दो पैसे।
वायसराय बैंक गए और पूछा वह कैसे संभव है। मालवीय जी ने अपनी जेब से पंचांग निकाला और कहा कि इसके माध्यम से लोग जान जाते हैं, कौन सा पर्व कब, किस मुहूर्त में और कहां लगता है, स्वयं श्रद्धा से वहां के लिए निकल पड़ते हैं।
महाकुंभ 2025 कोई सामान्य समागम नहीं है, इसका प्रभाव दूरगामी होगा। मेले में बुजुर्गों के अलावा नई पीढ़ी के युवकों युवतियों और बच्चों तक की भारी भीड़ अब होने लगी है समाज के सभी वर्गों की भागीदारी बढ़ रही है। महिलाएं भी महामंडलेश्वर पद पर आसीन हो रही हैं, जो पहले अकल्पनीय था।
विश्व के बदलते परिवेश में भारत तेजी से अपनी पहचान फिर से बना रहा है, कुछ ही वर्षों में योग विश्व भर में अत्यंत लोकप्रिय हो गया। एक दशक में भारत विश्व की दसवीं अर्थव्यवस्था से चैथी पर आ गया और निकट भविष्य में तीसरे पायदान पर पहुंच जाएगा।
महाकुंभ मेले में करोड़ों लोग इकट्ठा होंगे, उनमें विदेशों से आने वाले भारतीयों के अलावा बड़ी संख्या में पर्यटक, पत्रकार और मीडिया के लोग भी होंगे जो इस महान पर्व की झलक संसार को दिखाएंगे। महाकुंभ का वर्तमान आयोजन भारत को विश्व गुरु बनाने की
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