मौर्य से मिले चौधरी के सुर! अखिलेश का प्रत्याशी बदलने को फैसला वजह

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कानपुर। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी ने अभी तक 57 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर चुकी है। सपा इस बार इंडिया गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रही है। इस गठबंधन के तहत सपा 62 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। लेकिन सपा ने जिन 57 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान किया है, उनमें करीब दस सीटों पर प्रत्याशी का ऐलान करने के बाद उन्हें बदल दिया गया है। लेकिन अब जयंत चौधरी ने सपा के फैसले पर बयान दिया है। उन्होंने एक सवाल का जवाब देते हुए कहा- जब हम उनके साथ थे और हमारी उनकी सीटों को लेकर बात हो रही थी, तब उनके नेताओं ने हमारे नेताओं से कहा था कि पहले प्रत्याशी बताओ, तुम्हारे पास कौन प्रत्याशी है। आपने देखा कि उन्होंने खुद तीन-तीन और चार-चार बार खुद प्रत्याशी बदल दिए।

सपा के समर्थक निराश होते हैं- जयंत चौधरी

आरएलडी चीफ ने आगे कहा- उनके पास कौन सा प्रत्याशी था। एक बार आप सोचें कि कोई नामांकन करने जा रहा है और कोई नामांकन कर दिया है, तो प्रत्याशी बदलने से कितने उसके समर्थक होंगे जो निराश होंगे। ऐसे में हर स्तर पर एक कंफ्यूजन है। जो निर्णय लेने की एक क्षमता होनी चाहिए और एक कार्यकर्ता का विश्वास होना चाहिए कि स्थिरता है। कुछ सोच समझकर निर्णय लिया गया है। उन्होंने आगे कहा- कार्यकर्ता को विश्वास होना चाहिए कि पार्टी ने स्थिर निर्णय लिया है। सपा में किसी को पता ही नहीं है कि टिकट कहां से हो रहा है। कल तक अपने फैसले पर टिकेंगे या नहीं टिकेंगे। तब जब आप अपनी पार्टी को इस तरह से चला रहे हैं तो जनता में भी मैसेज जाएगा। हालांकि जयंत चौधरी से पहले स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी सपा से इस्तीफा देते वक्त अखिलेश यादव के इसी फैसले पर सवाल खड़े किए थे।

पूर्व सपा नेता ने उठाए थे सवाल

तब स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था कि सपा अध्यक्ष बार-बार अपने प्रत्याशी या सिंबल बदल देते हैं। उन्होंने इसके लिए 2022 विधानसभा चुनाव का ज़िक्र किया और कहा कि इन चुनावों में कई प्रत्याशियों का पर्चा व सिंबल दाखिल होने के बाद भी अचानक प्रत्याशी बदल दिए थे, बावजूद इसके उनकी कोशिशों के चलते पार्टी ने पहले से बेहतर प्रदर्शन किया। बता दें कि इस चुनाव में भी सपा ने करीब दस सीटों पर अभी तक अपने प्रत्याशी बदले हैं। मुरादाबाद, मेरठ, बदायूं, आजमगढ़ समेत तमाम सीटों पर पार्टी ने कई बार अपने प्रत्याशी बदले हैं। अखिलेश यादव के इस फैसले पर कई दफा सवाल खड़े होते रहे हैं।

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