एकसमय था कि जब हिन्दू धर्म का परचम विश्व के बड़े भू-भाग में लहराता था परन्तु…

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लव इंडिया, मुरादाबाद। 19 मार्च को अध्यात्म ज्ञान एवं चिंतन संस्था की 156वीं मासिक ब्रह्मज्ञान विचार गोष्ठी का आयोजन एमआईटी सभागार में किया गया जिसका विषय था, “हिन्दू समाज की अवनति के कारण और निवारण के उपाय।

सुधीर गुप्ता, एडवोकेट ने दृष्य-श्रव्य माध्यम से प्रस्तुति करते हुए बताया कि भारतीय सभ्यता विश्व की प्राचीनतम है और अपनी विशिष्टताओं के कारण विश्व की सर्वोच्च मार्गदर्शक एवं धर्मगुरु रही है। एकसमय था कि जब हिन्दू धर्म का परचम विश्व के बड़े भू-भाग में लहराता था परन्तु आज वहअवनति को प्राप्त हो गया है। इसके कारणों का विवेचन करना आवश्यक है।हिन्दू समाज की अवनति के कारणों में एक मुख्य कारण सामाजिक सामंजस्य में कमी आना है। जिसका कारण हमारे समाज का जातियों में बंट जाना है। यद्यपि वेदों में मनुष्यों को कर्मों के आधार पर चार वर्गों में वर्णित किया गया है परन्तु कालान्तर में ये वर्ग जन्म के आधार पर जातियों में परिवर्तित हो गए और आज 1000 से अधिक जातियाँ व उपजातियाँ हो गईं। इनमें से कुछ जातियों को अछूत बना दिया गया जिस कारण सामाजिक भेद-भाव बहुत बढ़ गया।

सुधीर गुप्ता, एडवोकेट ने बताया कि इसी प्रकार हिन्दू धर्म से उत्पन्न जैन, बौद्ध तथा सिक्ख धर्मों के अनुयायी भी स्वयंको हिन्दू समाज से अलग मानने लगे हैं। यद्यपि वेदो में एक निराकार ईश्वर की अवधारण है परन्तु कालान्तर में ईश्वर की विभिन्न शक्तियों को विभिन्न अवतारों व देवी-देवताओं के रूप में पूजा जाने लगा तथा उनके अलग-अलग सम्प्रदाय बन गए। इसी के साथ आर्थिक आधार पर भी आपस में बिखराव आ गया । दूसरा मुख्य कारण धार्मिक शिक्षा का अभाव है जिस कारण धर्म के आधार पर एकजुटता समाप्त हो गई है। अब हिन्दू समाज के उत्थान के लिए यह आवश्यक है कि जाति प्रथा को समाप्त अथवा नगण्य कर दिया जाए। व्यक्ति अपने नाम के आगे जाति सूचक शब्द लिखना बन्द कर दें तथा अन्तर्जातीय विवाह-सम्बन्धो को सम्मान व संरक्षण दिया जाए। साथ ही समस्त धार्मिक सम्प्रदायों को एक साथ लाने के लिए सारे मन्दिरों में ईश्वर के विभिन्न स्वरुपों विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां हों ताकि व्यक्ति अपनी आस्था के अनुसार पूजा करे। अलग-अलग जातियों के अलग-अलग सामाजिक संगठनों के बजाय सम्पूर्ण हिन्दू समाज के संगठन बनाकर उनकी सभाएं की जाएं।

सर्व हिन्दू समाज सम्मेलन किए जाएं ताकि समाज में सामन्जस्य बढ़े। इसी के साथ धार्मिक शिक्षा का प्रसार, हिन्दू धर्म ग्रन्थों की सरल भाषा में व्याख्या तथा पुस्तकालयों की स्थापना, मन्दिरों में तथा वीडियो वैन द्वारा धार्मिक शिक्षा दिया जाना, धर्म को सामाजिक गतिविधियों से जोड़ना,समाज में व्याप्त विभिन्न बुराईयों के प्रति वैचारिक चेतना जाग्रत करना, महिला सशक्तिकरण,अंधविश्वास की समाप्ति, राष्ट्र प्रेम को बढ़ाना, हिन्दू धर्म को उपहास का पात्र बनाने से रोकना, आदि की आज आवश्यकता है।

इसी के साथ आधुनिक प्रचार साधनों जैसे फेसबुक, ट्विटर, यू-ट्यूब आदि के द्वारा हिन्दू धर्म के मूल तत्वों, विशिष्ट सिद्धांतो आदि का प्रसारण किया जाए ताकि हम विश्व के हिन्दू अनुयायियों को एक सूत्र में पिरोने का कार्य कर सकें और साथ ही विश्व समुदाय में हिन्दू धर्म के प्रति फैली हुई भ्रान्तियों को दूर कर सकें।इस विचार गोष्ठी में सुधीर गुप्ता, रविन्द्र नाथ कत्याल, अविनाश चन्द्र शाह, विपिन सरन अग्रवाल, श्री नीरज आदि व विनोद कुमार उपस्थित थे।

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