भानु प्रताप के लिए मैक्स हॉस्पिटल वैशाली के डॉ. जिंदल बन गए ‘भगवान’

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उमेश लव, लव इंडिया, मुरादाबादमैक्स हॉस्पिटल, वैशाली के डॉक्टरों ने 50 वर्षीय मरीज के सीने से सफलतापूर्वक सिस्ट/कैविटी निकाल कर उसकी जान बचा ली। भानु प्रताप के दाहिने सीने में 1997 से मवाद जमा था जबकि उन्हें एंटी—टीबी दवाइयों का पूरा कोर्स कराया जा चुका था। इसके बावजूद उन्हें सांस लेने में तकलीफ के साथ—साथ सीने में लगातार दर्द हो रहा था।

मुरादाबाद के रहने वाले प्रताप दो दशक से सीने के दर्द से पीड़ित थे। सन 1997 के बाद से सीने में मवाद जमा होने के कारण उन्हें टीबी—रोधी दवाइयों का पूरा कोर्स कराया गया था लेकिन दुर्भाग्यवश दर्द के साथ—साथ उनके सीने में लगातार मवाद जमा होता गया। उन्होंने मुरादाबाद और आसपास के कई डॉक्टरों से इलाज कराया। उन्हें कई तरह की दवाइयां और इलाज पर भी रखा गया लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं आया। पिछले साल अक्तूबर में उनके सीने से मवाद और हवा निकलते रहने के लिए एक ट्यूब भी डाला गया। दो बार मवाद निकालने की प्रक्रिया भी अपनाई गई और ग्लू एप्लीकेशन भी किया गया लेकिन सभी इलाज असफल रहा।

लंबे समय तक पैसा खर्च करने के बाद उन्होंने मैक्स हॉस्पिटल वैशाली में थोरैसिस एंड रोबोटिक सर्जन डॉ. प्रमोज जिंदल से संपर्क किया। डॉ. जिंदल की टीम ने संपूर्ण जांच के बाद मवाद वाला हिस्सा निकालने का फैसला किया। इसके बाद 5 फरवरी 2022 को मैक्स हॉस्पिटल वैशाली के थोरैसिस सर्जरी क्लिनिक के डॉक्टरों ने उनकी सर्जरी की और यह सफल रही।

डॉ. जिंदल ने बताया, ‘मरीज का सफल आॅपरेशन किया गया और समस्त संक्रमित सिस्ट/कैविटी को बड़ी सावधानी से निकाला गया। इसमें कम से कम रक्तस्राव होने और फेफड़े को सुरक्षित रखने का भी पूरा ख्याल रखा गया। सही समय पर इलाज कराना ही मौत से बचने का एकमात्र विकल्प है और किसी थोरैसिस/लंग सर्जन से इलाज कराना इस बीमारी का मूलमंत्र है।’

प्रताप को सर्जरी के तीन दिन बाद ही 9 फरवरी को डिस्चार्ज कर दिया गया। वह सभी सामान्य गतिविधियों को अच्छी तरह अंजाम देने लगे थे। उन्हें न सिर्फ ट्यूब से छुटकारा मिल गया बल्कि 25 साल से अधिक समय बाद रोग से भी मुक्ति मिल गई। अब डॉक्टरों से नियमित सलाह लेते रहने से वह स्वस्थ और लंबा जीवन जी सकते हैं। आज प्रताप अच्छा महसूस कर रहे हैं और रोगमुक्त सामान्य जीवन जी रहे हैं।

डॉ. जिंदल ने बताया, ‘पल्मोनरी रोगों के बढ़ते मामलों के कारण भारत में ट्यूबरकुलोसिस खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है और लाखों लोग इंटरस्टिशियल लंग डिजीज (आईएलडी) की चपेट में आ चुके हैं जो चिंता का विषय है। बचावकारी और साध्य रोग होने के बावजूद ट्यूबरकुलोसिस के इलाज के बाद भी कई प्रमुख लक्षण देखे गए हैं जिनका इलाज समय पर नहीं कराया जाए जो ये जानलेवा हो सकते हैं। इस मौके पर हम लोगों को टीबी के खतरे और इसके गंभीर परिणामों को लेकर सचेत करना चाहते हैं कि पहले से ज्ञात खतरे से ज्यादा यह रोग जानलेवा हो सकता है।’

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