देश-धर्म भक्ति के साथ-साथ सर्वोच्च बलिदान के प्रतीक हैं गुरु तेग बहादुर : अजय शर्मा

India International Uttar Pradesh Uttarakhand तीज-त्यौहार तेरी-मेरी कहानी

संजीव गुप्ता लव इंडिया संभल। हिंदू जागृति मंच के तत्वावधान में सिक्खों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर का बलिदान दिवस मनाया गया |नगर के मोहल्ला कोट पूर्वी स्थित श्री सनातन धर्म मंदिर में चौधरी महिपाल सिंह, अनंत कुमार अग्रवाल, सरदार कुलबीर सिंह और शालिनी रस्तोगी ‘मीनू’ ने गुरु तेग बहादुर के चित्र के समक्ष माल्यार्पण करके कार्यक्रम को प्रारंभ किया |सांस्कृतिक मंत्री विष्णु कुमार भजन की प्रस्तुति की|

प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार शर्मा ने कहा कि धैर्य, वैराग्य और त्याग की मूर्ति गुरु तेग बहादुर ने 20 सालों तक साधना की थी | उन्होंने गुरु नानक के सिद्धांतों का प्रचार करने के लिए देश में कश्मीर और असम जैसे स्थानों की लंबी यात्रा की | अंधविश्वासों की आलोचना कर समाज में नए आदर्श स्थापित किए | गुरु तेग बहादुर ने आस्था, विश्वास और अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था | माना जाता है कि उनकी देशभक्ति धर्मभक्ति एवं शहादत दुनिया में मानव अधिकारियों के लिए पहली शहादत थी। इसलिए उन्हें सम्मान के साथ ‘हिंद की चादर’ कहा जाता है | गुरु तेग बहादुर की याद में उनके शहीदी स्थल पर एक गुरुद्वारा साहिब बना है. जिसे गुरुद्वारा शीश गंज के नाम से जाना जाता है |

श्री गुरुद्वारा साहिब से आए ज्ञानी गुरजीत सिंह ने मुख्य अतिथि के रूप में कहा कि विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है। आततायी शासक की धर्मविरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी। यह उनके निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण था। वे शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग-पुरुष थे।

लोकतंत्र सेनानी चौधरी महिपाल सिंह ने कहा गुरू तेग बहादुर जी ने अपने युग के शासन वर्ग की नृशंस एवं मानवता विरोधी नीतियों को कुचलने के लिए बलिदान दिया। कोई ब्रह्मज्ञानी साधक ही इस स्थिति को पा सकता है। मानवता के शिखर पर वही मनुष्य पहुंच सकता है जिसने ‘पर में निज’ को पा लिया हो।

प्रदेश महामंत्री सुबोध कुमार गुप्ता ने कहा गुरु तेग बहादुर साहब का बलिदान न केवल धर्म पालन के लिए अपितु समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की खातिर बलिदान था। धर्म उनके लिए सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था। इसलिए धर्म के सत्य व शाश्वत मूल्यों के लिए उनका बलि चढ़ जाना वस्तुत: सांस्कृतिक विरासत और इच्छित जीवन विधान के पक्ष में एक परम साहसिक अभियान था।

इस अवसर पर अनंत कुमार अग्रवाल, अरुण कुमार अग्रवाल, सुभाष चंद्र शर्मा, श्याम शरण शर्मा, अमित शुक्ला, अरविंद शंकर शुक्ला, विनोद कुमार अग्रवाल, सरिता गुप्ता, शालिनी रस्तोगी, सीमा आर्या, नीरू चाहल, रूपाली गुप्ता आदि उपस्थित रहे | कार्यक्रम की अध्यक्षता शालिनी रस्तोगी ‘मीनू’ ने तथा संचालन विकास कुमार वर्मा ने किया |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *