हरि नाम संकीर्तन और हरि सेवा से दूर करें भव-रोग को : अर्द्धमौनी

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लव इंडिया,मुरादाबाद। श्रीशिव हरि मन्दिर, रामगंगा विहार में आयोजित इन्दिरा एकादशी संकीर्तन में कथा व्यास एवं मठ-मन्दिर विभाग प्रमुख धीरशान्त दास अर्द्धमौनी ने बताया कि वैष्णव भक्तवृन्द के सानिध्य में कृष्ण भावनामृत के ज्ञान से भवरोगों से बचा जा सकता है।

धीरशान्त दास अर्द्धमौनी ने बताया कि पाँच-छ: मनुष्य हैं। उन सबको एक ही रोग है, उसके लिये जुलाब लेना आवश्यक है। वे पंसारी की दूकान पर जाकर पूछते हैं कि ‘भाई! जुलाब के लिये क्या लेना चाहिये। वह कहता है कि नमकीन आँवला बहुत अच्छा रहेगा। दूसरी हरेँदूकान पर जाकर पूछते हैं तो वह कहता हैटटट कि अच्छी रहेंगी। तीसरा दूकानदार कहता है कि नौसादर अच्छा रहेगा। चौथा कहता है कि विलायती नमक अच्छा रहेगा। झण्डू की दूकानपर पूछने से वह कहता है कि अश्वगन्धा ले लो, वायु कुपित हो गया है।

धीरशान्त दास अर्द्धमौनी ने बताया कि ऐसी अवस्था में वे निश्चय नहीं कर पाते कि कौन-सा जुलाब लें और उनको निराशा हो जाती है। वैद्यराज प्रत्येक की प्रकृति की जाँच करके किसी को हर्रे, किसी को नौसादर तथा किसी को नमकीन आँवला, किसी को विलायती नमक का नुस्खा बताते हैं और उससे प्रत्येक को लाभ होता है। इसी प्रकार हम सब लोग एक ही रोग से पीड़ित हैं। व्याधि महाभयंकर है, उसका नाम है भव-रोग। निदान तो ठीक है, परन्तु चिकित्सा में भूल होने से मृत्यु निश्चित है। यहाँ मृत्यु का अर्थ एक बार मरना नहीं है, बल्कि अनन्त मृत्यु के चक्कर में भटकना है। सद्गुरुरूपी सद्वैद्य के पास जाना चाहिये और उनकी बतलायी हुई ओषधि का सेवन तबतक करना चाहिये, जब तक व्याधि निर्मूल न हो जाय। इसमें असावधानी करने से रोग दूर नहीं हो सकता।

धीरशान्त दास अर्द्धमौनी ने बताया कि आध्यात्मिक मार्ग में पुस्तक पढ़ने या भाषण सुनने से कार्यसिद्धि नहीं होती। यथार्थ रहस्य जानना है तो ज्ञानी अर्थात् श्रोत्रिय और तत्त्वदर्शी ब्रह्मनिष्ठ महात्मा की शरण में जाओ। उनको विनयपूर्वक प्रणाम करके, उनकी सेवा करके प्रश्न करने से वे महात्मा यथार्थ रहस्य समझायेंगे। तत्त्व का रहस्य समझने का यही मार्ग है। दूसरा कोई मार्ग नहीं है। औषध निश्चित हो जाने के बाद उसके सेवन में भी बहुत ध्यान देना चाहिये। अतएव भगवान् पतंजलि कहते हैं कि दीर्घकाल पर्यन्त, जब तक व्याधि निर्मूल न हो जाय, तबतक ओषधि सेवन करना चाहिये और वह भी सतत, बीच में त्रुटि न आने दे। यह नहीं कि सप्ताह में पाँच दिन किया और दो दिन नहीं किया। सबसे महत्त्व की बात है। श्रद्धा और विश्वासपूर्वक औषध का सेवन करना चाहिये। सद्गुरु के बताये हुए साधन, जब तक साध्य में सिद्धि न हो, तब तक श्रद्धा और विश्वास पूर्वक आज्ञा पालन करते रहो।

संकीर्तन में पं० नारायण प्रसाद, भागेश रानी, प्रभा बब्बर, कुसुम उत्तरेजा, पायल मग्गू, सुधा शर्मा, राज मदान, सन्जू चौधरी, सरोज गुप्ता, गीता सैनी, भागवन्ती, सुमन चौधरी, सूर्यभान सिंह, अंकुश सिंह, देवांश अग्रवाल, शक्ति गुप्ता आदि ने सहभागिता की।

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